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________________ पंचदशोऽध्यायः 289 गजवीथि में विचरण करने वाला वाम शुक्र बीस, तीस और चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है ।।162।। ऐरावणपथे विशच्चत्वारिंशदथापि वा। पंचाशीतिका ज्ञेया खारी तुल्या तु भार्गवः ॥163॥ ऐरावणवीथि में विचरण करने वाला शुक्र तीस, चालीस और पचासी खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है ।। 163।। विशका त्रिशका खारी चत्वारिंशतिकाऽपि वा। व्योमगो वीथिमागम्य करोत्यर्पण भार्गवः ॥1641 बीस, तीस और चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव व्योमवीथि में गमन करने वाला शुक्र करता है ॥164॥ चत्वारिंशत् पंचाशद् वा षष्टि वाऽथ समादिशेत् । जरदगवपथं प्राप्ते भार्गवे खारिसंज्ञया।।165॥ जरद्गव वीथि को प्राप्त होने वाला शुक्र चालीस, पचास और साठ खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है ।। 165।। सप्ततिं चाथ वाऽशीति नवति वा तथा दिशेत् । अजवीथीगते शुक्रे भद्रबाहुवचो यथा ॥166॥ अजवीथि को प्राप्त होने वाला शुक्र सत्तर, अस्सी अथवा नब्बे खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।166।। विशत्यशीतिका खारि शतिकामप्ययथा दिशेत। मृगवीथीमुपागम्य विवर्णो भार्गवो यदा ॥167॥ जब शुक्र विवर्ण होकर मृगवीथि को प्राप्त करता है तो बीस, अस्सी अथवा सौ खारी प्रमाण अन्न का भाव होता है ।।167।। विच्छिन्नविषमृणालं न च पुष्पं फलं यदा। वैश्वानरपथं प्राप्तो यदा वामस्तु भार्गव: ॥168॥ जब वामस्थ शुक्र वैश्वानर वीथि में गमन करता है तब कमल का डण्ठल, विसपत्र, पुष्प और फल उत्पन्न नहीं होते हैं ।।168॥ 1. वामगो म० । 2. करोत्यथं च भार्गवः मु० । 3. शतिका द्विशता खारी, त्रिंशता वा तदा भवेत् मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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