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________________ पंचदशोऽध्यायः 273 जब उपर्युक्त नक्षत्रों में शुक्र उत्तर की ओर से गमन करता है तो मध्यम वर्ष होता है तथा महामारी और व्याधियों का अभाव होता है ।।63।। निष्पत्तिः सर्वधान्यानां भयं चात्र न मूर्च्छति। खारीचतुष्का विज्ञेया वृषवीथीति संजिता ॥640 ___ जब वृषवीथि में शुक्र गमन करता है तो सभी प्रकार के धान्यों की उत्पत्ति होती है, भय और आतंक का अभाव रहता है तथा चार खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है ।।65॥ अभिजिच्छवणं चापि धनिष्ठावारुणे तथा। रेवती भरणी चैव तथा भाद्रपदाऽश्विनी ॥65॥ निचयास्तदा विपद्यन्ते खारी विन्द्याच्च पञ्चिका। ऐरावणपथो ज्ञेयोऽश्रेष्ठ एव प्रकीर्तितः ॥66॥ अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, भरणी, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और अश्विनी इन नक्षत्रों में शुक्र का गमन करना ऐरावणपथ माना जाता है। इस मार्ग में गमन करने से समुदायों को विपत्ति होती है और पांच खारी प्रमाण उत्पन्न होता है ।।65-66।। एषां यदा दक्षिणतो भार्गव: प्रतिपद्यते । बहूदकं तदा विन्द्यात् श्महाधान्यानि वापयेत् ॥67॥ उपयुक्त नक्षत्रों में यदि शक्र दक्षिण मार्ग से गमन करे तो अत्यधिक वर्षा होती है तथा स्थल में बीज बोने पर भी धान्य की उत्पत्ति होती है ।।67॥ जलजानि तु शोभन्ते ये च जीवन्ति वारिणा। खारी तदाष्टिका ज्ञेया गजवीथीति संज्ञिता ॥68॥ जलचर जन्तु शोभित और आनन्दित होते हैं तथा इसमें आठ खारी प्रमाण धान्य और इसकी संज्ञा गजवीथि है ।।68॥ एतेषामेव तु मध्येन यदा याति तु भार्गव: । स्थलेष्वप्तबीजानि जायन्ते निरुपद्रवम् ॥69॥ जब शुक्र उपर्युक्त नक्षत्रों के मध्य से गमन करता है तो स्थल में बोये गये बीज भी निर्विघ्न होते हैं।।69।। 1. एतेषां मु० । 2. महाधान्यं स्थले वपेत् ० । 3. स्थलेषूप्तानि बीजानि जायन्ते निरुपद्रवम् मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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