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________________ पंचदशोऽध्याय 271 गमन करने से जघन्य, उत्तम और मध्यम फल होता है। अतएव इन नक्षत्रों में निस्सन्देह शुभाशुभ फल का प्रतिपादन करना चाहिए ॥50॥ तिष्यो ज्येष्ठा तथाऽऽश्लेषा 'हरिणो मूलमेव च। हस्तं चित्रा मघाऽषाढ़े शुको दक्षिणतो व्रजेत् ॥51॥ पुष्य, आश्लेषा, ज्येष्ठा, मृगशिरा, मूल, हस्त, चित्रा, मघा, पूर्वाषाढ़ा इन नक्षत्रों में शुक्र दक्षिण से गमन करता है ।। 5 1।। शुष्यन्ते तोयधान्यानि राजानः क्षत्रियास्तथा। उग्रभोगाश्च पीड्यन्ते धननाशो 'विनायकः ॥52॥ दक्षिण मार्ग से जब शुक्र गमन करता है तो जल और अनाज के पौधे सूख जाते हैं तथा राजा, क्षत्रिय और महाजन पीड़ित होते हैं एवं धन का नाश होता है ॥52॥ वैश्वानरपथो नामा यदा हेमन्तग्रीष्मयोः । मारुताऽग्निभयं कुर्यात् 'वारी च चतुःषष्टिकाम् ॥53॥ जब हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में वैश्वानरवीथि से शुक्र गमन करता है तो वायु और अग्नि भय, मृत्यु आदि फल घटित होते हैं तथा एक आढक प्रमाण जल बरसाता है ।। 53॥ एतेषामेव मध्येन यदा गच्छति भार्गवः। विषमं वर्षमाख्याति "स्थले बीजानि वापयेत् ॥54॥ जब शुक्र इनके मध्य से गमन करता है तो सभी बातें विषम हो जाती हैं अर्थात वर्ष निकृष्ट होता है । उस वर्ष बीज स्थल में बोना चाहिए ।।54॥ खारी द्वात्रिशिका ज्ञेया मृगवीथीति संज्ञिता। व्याधयः त्रिषु विज्ञेयास्तथा चरति भार्गवे ॥55॥ जब शुक्र मृगवीथि में विचरण करता है तब धान्य 32 खारी प्रमाण उत्पन्न होते हैं और दैहिक, दैविक तथा भौतिक तीनों प्रकार की व्याधियाँ अवगत करनी चाहिए ।' 550 एतेषां तु यदा शक्रो व्रजत्युत्तरस्तथा। विषमं वर्षमाख्याति निम्ने बीजानि वापयेत् ॥56॥ 1. सन्ध्यायां मु० । 2. विनाशक: मु० । 3. मृत्युः मु० । 4. खारी मु० । 5. सर्व मु०। 6. बीजानि तु स्थले वपेत् मु० । 7. व्याधयश्च मु० । 8. यदा मु० । 9. भृशं निम्ने वपेत्तदा मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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