SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 256 भद्रबाहुसंहिता धन-धान्य के विनाश के साथ अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं। फल-फलों में विकार का दिखलाई पड़ना, प्रकृति विरुद्ध फल-फूलों का दृष्टिगोचर होना ही उस स्थान की शान्ति को नष्ट करने वाला तथा आपस में संघर्ष उत्पन्न करने वाला है। शीत और ग्रीष्म में परिवर्तन हो जाने से अर्थात् शीत ऋतु में गर्मी और ग्रीष्म ऋतु में शीत पड़ने से अथवा सभी ऋतुओं में परस्पर परिवर्तन हो जाने से देवभय, राजभय, रोगभय और नाना प्रकार के कष्ट होते हैं। यदि नदियां नगर के निकटवर्ती स्थान को छोड़कर दूर हटकर बहने लगें तो उन नगरों की आबादी घट जाती है, वहां अनेक प्रकार के रोग फैलते हैं। यदि नदियों का जल विकृत हो जाय, वह रुधिर, तेल, घी, शहद आदि की गन्ध और आकृति के समान बहता हुआ दिखलाई पड़े तो भय, अशान्ति और धनक्षय होता है । कुओं से धूम निकलता हुआ दिखलाई पड़े, कुआँ का जल स्वयं ही खौलने लगे, रोने और गाने का शब्द जल से निकले तो महामारी फैलती है। जल का रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में परिवर्तन हो जाय तो भी महामारी की सूचना समझनी चाहिए। स्त्रियों का प्रसव विकार होना, उनके एक साथ तीन-चार बच्चों का पैदा होना, उत्पन्न हुए बच्चों की आकृति पशुओं और पक्षियों के समान हो तो जिस कुल में यह घटना घटित होती है, उस कुल का विनाश, उस गांव या नगर में महामारी, अवर्षण और अशान्ति रहती है। इस प्रकार के उत्पात का फल छह महीने से लेकर एक वर्ष तक प्राप्त होता है । घोड़ी, ऊँटनी, भैंस, गाय और हथिनी एक साथ दो बच्चे पैदा करें तो इनकी मृत्यु हो जाती है तथा उस नगर में मारकाट होती है। एक जाति का पशु दूसरे जाति के पशु के साथ मैथुन करे तोअमंगल होता है । दो बैल परस्पर में स्तनपान करें तथा कुत्ता गाय के बछड़े का स्तनपान करे तो महान् अमंगल होता है। पशुओं के विपरीत आचरण से भी अनिष्ट की आशंका समझनी चाहिए। यदि दो स्त्री जाति के प्राणी आपस में मैथुन करें तो भय, स्तनपान अकारण करें तो हानि, दुर्भिक्ष एवं धन-विनाश होता है। रथ, मोटर, बहली आदि की सवारी बिना चलाये चलने लगे और बिना किसी खराबी के चलाने पर भी न चले तथा सवारियां चलाने पर भूमि में गड़ जाये तो अशुभ होता है। बिना बजाये तुरही का शब्द होने लगे और बजाने पर बिना किसी प्रकार की खराबी के तुरही शब्द न करे तो इससे परचक्र का आगमन होता है अथवा शासक का परिवर्तन होता है। नेताओं में मतभेद होता है और वे आपस में झगड़ते हैं। यदि पवन स्वयं ही सांय-सांय की विकृत ध्वनि करता हुआ चले तथा पवन से घोर दुर्गन्ध आती हो तो भय होता है, प्रजा का विनाश होता है तथा दुर्भिक्ष भी होता है । घर के पालतू पक्षिगण वनमें जाये और बनले पक्षी निर्भय होकर पुर में प्रवेश करें, दिन में चरने वाले रात्रि में अथवा रात्रि के चरने वाले दिन में प्रवेश करें तथा दोनों सन्ध्याओं में मग और पक्षी मण्डल बांधकर एकत्र
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy