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________________ चतुर्दशोऽध्यायः जहाँ देश और नगरों में पिशाच दिखलाई पड़ें वहाँ अन्य व्यक्ति राजा होता है तथा प्रजा को अत्यन्त भय होता है ।। 107।। भूमिर्यत्र नभो याति विशति वसुधाजलम् । दृश्यन्ते वाऽम्बरे देवास्तदा राजवधो ध्रुवम् ॥108॥ जहाँ पृथ्वी आकाश की ओर जाती हुई मालूम हो अथवा पाताल में प्रविष्ट होती हुई दिखलाई पड़े और आकाश में देव दिखलाई पड़ें तो वहाँ राजा का वध निश्चयतः होता है || 108 | 241 धूमज्वालां रजो भस्म यदा मुञ्चन्ति देवताः । तदा तु म्रियते राजा मूलतस्तु जनक्षयः ॥109॥ यदि देव धूम, ज्वाला, धूलि और भस्म - राख की वर्षा करें तो राजा का मरण होता है तथा मूलरूप से मनुष्यों का भी विनाश होता है ।11091 अस्थिमांसः पशूनां च भस्मनां निचयैरपि । जनक्षयाः प्रभूतास्तु विकृते वा नृपवधः ॥1100 यदि पशुओं की हड्डियाँ और मांस तथा भस्म का समूह आकाश से बरसे तो अधिक मनुष्यों का विनाश होता है । अथवा उक्त वस्तुओं में विकार — उत्पात होने पर राजा का वध होता है ||10|| विकृताकृति संस्थाना जायन्ते यत्त्र मानवाः । तत्र राजवधो ज्ञेयो विकृतेन सुखेन वा ॥111॥ जहाँ मनुष्य विकृत आकार वाले और विचित्र दिखलाई पड़ें वहाँ राजा का वध होता है अथवा विकृत दिखलाई पड़ने से सुख क्षीण होता है । 111॥ वधः सेनापतेश्चापि भयं दुर्भिक्षमेव च । अग्नेर्वा थवा वृष्टिस्तदा स्यान्नात्र संशयः ॥112॥ यदि आकाश से अग्नि की वर्षा हो तो सेनापति का वध, भय और दुर्भिक्ष आदि फल घटित होते हैं, इसमें सन्देह नहीं है । 112 | द्वारं शस्त्रगृहं वेश्म राज्ञो देवगृहं तथा । धूमायन्ते यदा राज्ञस्तदा मरणमादिशेत् ॥113॥ देवमन्दिर या राजा के महल के द्वार, शस्त्रागार, दालान या बरामदे में धुआँ दिखलाई पड़े तो राजा का मरण होता है ।।113।। 1. मृगपक्षिपशूनां च भाषणे ज्वलने गमे मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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