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________________ 232 भद्रबाहुसंहिता महापिपीलिकाराशिविस्फुरन्ती विपद्यते। उह्यानुत्तिष्ठते यत्र तत्र विन्द्यान्महद्भयम् ।।53॥ जहां अत्यधिक चींटियों का समूह विस्फुरित-काँपते हुए मृत्यु को प्राप्त हो और उह्य-क्षत-विक्षत-घायल होकर स्थित हो, वहाँ महान् भय होता है ।।53॥ श्वश्वपिपीलिकावन्दं निम्नमध्वं विसर्पति । वर्ष तत्र विजानीयाद्भद्रबाहुवचो यथा ॥54॥ जहाँ चींटियाँ रूप बदल कर-पंख वाली होकर नीचे से ऊपर को जाती हैं, वहां वर्षा होती है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।54।। राजोपकरणे भग्ने चलिते पतितेऽपि वा। क्रव्यादसेवने चैव राजपीडां समादिशेत् ॥55॥ राजा के उपकरण-छत्र, चमर, मुकुट आदि के भग्न होने, चलित होने या गिरने से तथा मांसाहारी के द्वारा सेवा करने से राजा पीड़ा को प्राप्त होता है।।550 वाजिवारणयानानां मरणे छेदने दुते । परचक्रागमात् विन्द्यादुत्पातज्ञो जितेन्द्रियः ॥56॥ घोड़ा, हाथी आदि सवारियों के अचानक मरण, घायल या छेदन होने से जितेन्द्रिय उत्पात शास्त्र के जानने वाले को परशासन का आगमन जानना चाहिए ।।56॥ क्षत्रिया: पुष्पितेऽश्वत्थे ब्राह्मणाश्चाप्युदुम्बरे। वैश्या: प्लक्षेऽथ पीड्यन्ते न्यग्रोधे शूद्रदस्यवः ॥57॥ असमय में पीपल के पेड़ के पुष्पित होने से ब्राह्मणों को, उदुम्बर के वृक्ष के पुष्पित होने से क्षत्रियों को, पाकर वृक्ष के पुष्पित होने से वैश्यों को और वट वृक्ष के पुष्पित होने से शूद्रों को पीड़ा होती है 157।। इन्द्रायुधं निशिश्वेतं विप्रान् रक्तं च क्षत्रियान् । निहन्ति पीतकं वैश्यान् कृष्णं शूद्रभयंकरम् ॥58॥ रात्रि में इन्द्रधनुष यदि श्वेत रंग का हो तो ब्राह्मणों को, लाल रंग का हो तो क्षत्रियों को, पीले रंग का हो तो वैश्यों को और काले रंग का हो तो शूद्रों को भयदायक होता है ।। 58॥
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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