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त्रयोदशोऽध्यायः
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यदि दक्षिण-दाहिनी, पार्श्व-ओर से घोड़ा शयन करे तो जय देने वाला और पेट की ओर से शयन करे तो आश्चर्यपूर्वक जय देता है ।।156॥
वामार्धशायिनश्चैव तुरङ्गा नित्यमेव च।
राज्ञो यस्य न सन्देहस्तस्य मृत्युं समादिशेत् ॥157॥ यदि नित्य बायीं आधी करवट से घोड़ा शयन करे तो निःसन्देह उस राजा की मृत्यु की सूचना समझनी चाहिए ॥ 1571
सौसप्यन्ते यदा नाग: पश्चिमश्चरणस्तथा।
सेनापतिवधं विद्याद् यदाऽन्नं च न भुञ्जते ॥158॥ यदि हाथी पश्चिम की ओर पैर करके शयन करे तथा कोई अन्न नहीं खाये तो सेनापति का वध समझना चाहिए ।।। 58।।
1यदान्नं पादवारों वा नाभिनन्दन्ति हस्तिनः ।
यस्यां तस्यां तु सेनायामचिराद्वधमादिशेत् ॥159॥ जिस सेना में हाथी अन्न, जल और तृण नहीं खाते हों -त्याग कर चुके हों, उस सेना में शीघ्र ही वध होता है ।। 159।।
निपतन्त्यग्रतो यद्वै वस्यन्ति वा रुदन्ति वा।
निष्पदन्ते समुद्विग्नां यस्य तस्य वधं वदेत् ॥160॥ जिस राजा के प्रयाण काल में उसके आगे आकर दुःखी या रुदन करता हुआ व्यक्ति गिरता हो अथवा उद्विग्न होकर आता हो तो उस राजा का वध होता है ।।1600
ऋरं नदन्ति विषमं विस्वरं निशि हस्तिन: ।
दीप्यमानास्तु केचित्तु तदा सेनावधं ध्रुवम् ॥161॥ यदि रात्रि में हाथी क्रूर, विषम, घोर और विस्वर - विकृत स्वर वाली आवाज करें अथवा दीप्त–ताप में जलते हुए दिखलाई पड़ें तो सेना का शीघ्र वध होता है ।।161॥
गो-नागवाजिनां स्त्रीणां मुखाच्छोणितबिन्दवः ।
द्रवन्ति बहुशो यत्र तस्य राज्ञ: पराजय: ॥162॥ जिस राजा को प्रयाण-काल में गाय, हाथी, घोड़ा, और स्त्रियों के मुख पर
1. सदन्ताः पादचारी वा नाभिमन्नन्ति हस्तिनः ।