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________________ 172 भद्रबाहुसंहिता और पूर्वाफाल्गुनी ये नक्षत्र हों और इन्हीं में गर्भ धारण की क्रिया हुई हो तो आषाढ़ में केवल तीन दिनों तक ही उत्तम वर्षा होती है। यदि मार्गशीर्ष में उत्तरा, हस्त और चित्रा ये नक्षत्र सप्तमी तिथि को पड़ते हों और इसी तिथि को गर्भ धारण करें तो आषाढ़ में केवल बिजली चमकती है और मेघों की गर्जना होती है। अन्तिम दिनों में तीन दिन वर्षा होती है । आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को स्वाती नक्षत्र पड़े तो इस दिन महावृष्टि होने का योग रहता है। मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी, एकादशी और द्वादशी और अमावस्या को चित्रा, स्वाती, विशाखा नक्षत्र हों और इन तिथियों में मेघों ने गर्भ धारण किया हो तो आषाढ़ी पूर्णिमा को घनघोर वर्षा होती है। जब गर्भ का प्रसवकाल आता है, उस समय पूर्व में बादल धूमिल, सूर्यास्त में श्याम और मध्याह्न में विशेष गर्मी रहती है। यह लक्षण प्रसवकाल का है। श्रावण, भाद्रपद और आश्विन का गर्भ सात दिन या नौ दिन में ही बरस जाता है । इन महीनों का गर्भ अधिक वर्षा करने वाला होता है। दक्षिण की प्रबल हवा के साथ पश्चिम की वायु भी साथ ही चले तो शीघ्र ही वर्षा होती है। यदि पूर्व पवन चले और सभी दिशाएं धूम्रवर्ण हो जाये तो चार प्रहर के भीतर मेघ बरसता है। यदि उदयकाल में सूर्य पिघलाये गये स्वर्ण के समान या वैडूर्य मणि के समान उज्ज्वल हो तो शीघ्र ही वर्षा करता है। गर्भकाल में साधारणतः आकाश में बादलों का छाया रहना शुभ माना गया है । उल्कापात, विद्य त्पात, धूलि, वर्षा, भूकम्प, दिग्दाह, गन्धर्वनगर, निर्घात शब्द आदि का होना मेघगर्भ काल में अशुभ माना गया है । पंचनक्षत्र-पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, रोहिणी, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद में धारण किया गया गर्भ सभी ऋतुओं में वर्षा का कारण होता है । शतभिषा, आश्लेषा, आर्द्रा, स्वाती, मघा इन नक्षत्रों में धारण किया गया गर्भ भी शुभ होता है । अच्छी वर्षा के साथ सुभिक्ष, शान्ति, व्यापार में लाभ और जनता में सन्तोष रहता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का गर्भ पशुओं के लिए लाभदायक होता है । इस गर्भ का निमित्त नर और मादा पशुओं की उन्नति का कारण होता है । पशुओं के रोग आदि नष्ट हो जाते हैं और उन्हें अनेक प्रकार से लोग अपने कार्यों में लाते हैं। पशुओं की कीमत भी बढ़ जाती है। देश में कृषि का विकास पूर्णरूप से होता है तथा कृषि के सम्बन्ध में नये-नये अन्वेषण होते हैं। पूर्वाषाढ़ा में गर्भ धारण करने से चातुर्मास में उत्तम वर्षा होती है और माघ के महीने में भी वर्षा होती है, जिससे फसल की उत्पत्ति अच्छी होती है । पूर्वाषाढ़ा का गर्भ देश के निवासियों के आर्थिक विकास का भी कारण बनता है । यदि इस नक्षत्र के मध्य में गर्भ धारण का कार्य होता है, तो.प्रशासक के लिए हानि होती है तथा राजनीतिक दृष्टि से उक्त प्रदेश का सम्मान गिर जाता है। उत्तराषाढ़ा में गर्भ धारण की क्रिया होती है तो भाद्रपद के महीने में अल्प वर्षा होती है, अवशेष महीनों में खूब वर्षा होती है। कलाकार और शिल्पियों के
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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