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________________ त्रयोदशोऽध्यायः 189 अभिद्रवन्ति यां सेनां विस्वरं मृगपक्षिणः। श्वमानुषशृगाला वा सा सेना वध्यते परैः॥82॥ जिस सेना पर विकृत स्वर में आवाज करते हुए पशु-पक्षी आक्रमण करें अथवा कुत्ता, मनुष्य और शृगाल सेना का पीछा करें तो यह सेना शत्रुओं के द्वारा वध को प्राप्त होती है ।।821 भग्नं दग्धं च शकटं यस्य राज्ञः प्रयायिणः । देवोपसष्टं जानीयान्न तत्र गमनं शिवम् ॥83॥ प्रस्थान करने वाले जिस राजा की गाड़ी-रथ, या अन्य वाहन अकस्मात् भग्न या दग्ध हो जाय तो उसे यह दैविक उपसर्ग समझना चाहिए और उसका गमन करना कल्याणकारी नहीं है ॥83॥ उल्का वा विद्युतोऽभ्र वा कनका: सूर्यरश्मयः। स्तनितं यदि वा छिद्र सा सेना वध्यते परैः ॥841 यदि प्रयोण काल में उल्का, विद्य त्, अभ्र और सूर्य की स्वर्ण किरणें स्तनित कड़कती हुई अथवा सछिद्र दिखाई पड़ें तो सेना शत्रुओं के द्वारा वध को प्राप्त होती है ॥84॥ प्रयातायास्तु सेनाया यदि कश्चिन्निवर्तते। चतुष्पदो द्विपदो वा न सा यात्रा विशिष्यते॥85॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना से कोई चतुष्पद-हाथी, घोड़े आदि पशु (या द्विपद--मनुष्य (या पक्षी) लौटने लगें तो उस यात्रा को शिष्ट-शुभकारी नहीं समझना चाहिए।।851 प्रयातो यदि वा राजा निपतेद् वाहनात् क्वचित् । अन्यो वाऽपि गजाऽश्वो वा साऽपि यात्रा जुगुप्सिता ॥86॥ यदि प्रयाण करता हुआ राजा यकायक सवारी से गिर जाये अथवा अन्य हाथी, घोड़े गिर जायें तो यात्रा को निन्दित समझना चाहिए ॥86॥ ऋव्यादाः पक्षिणो यत्र निलीयन्ते ध्वजादिषु । निवेदयन्ति ते राज्ञस्तस्य घोरं चमूवधम् ॥87॥ जिस राजा की सेना की ध्वजा पर मांसभक्षी पक्षी बैठ जाये तो उस राजा की सेना का भयंकर वध होता है ।।87॥ मुहुर्मुहर्यदा राजा निवर्तन्तो निमित्ततः । प्रयात: परचक्रण सोऽपि वध्येत संयुगे॥88॥
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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