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________________ दशमोऽध्यायः 139 वर्षा अधिक मनोरम होती है । चैत्र शुक्लपक्ष में आकाश में बादलों का छाया रहना शुभ समझा जाता है। यदि चैत्र शुक्ला पंचमी को रोहिणी नक्षत्र हो और इस दिन बादल आकाश में दिखलाई पड़ें तो निश्चय से आगामी वर्ष अच्छी वर्षा होती है। सुभिक्ष रहता है तथा प्रजा में सुख-शान्ति रहती है। सूर्य जिस समय या जिस दिन आर्द्रा में प्रवेश करता है, उस समय या उस दिन के अनुसार भी वर्षा और सुभिक्ष का फल ज्ञात किया जाता है। आचार्य मेघ महोदय गार्ग ने लिखा है कि सूर्य रविवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करे तो वर्षा का अभाव या अल्पवृष्टि, देश में उपद्रव, पशुओं का नाश, फसल की कमी, अन्न का भाव महँगा एवं देश में उपद्रव आदि फल घटित होते हैं। सोमवार को आर्द्रा में रवि का प्रवेश हो तो समयानुकूल यथेष्ट वर्षा, सुभिक्ष, शान्ति, परस्पर मेल-मिलाप की वृद्धि, सहयोग का विकास, देश की उन्नति, व्यापारियों को लाभ, तिलहन में विशेष लाभ, वस्त्र-व्यापार का विकास एवं घृत सस्ता होता है । मंगलवार को आर्द्रा में रवि का प्रवेश हो तो देश में धन की हानि, अग्निभय, कलह-विसंवादों की वृद्धि, जनता में परस्पर संघर्ष, चोर-लुटेरों की उन्नति, साधारण वर्षा, फसल में कमी और वन एवं खनिज पदार्थों की उत्पत्ति में कमी होती है। बुधवार को आर्द्रा में सूर्य का प्रवेश हो तो अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, धान्य भाव सस्ता, रस भाव महंगा, खनिज पदार्थों की उत्पत्ति अधिक, मोती-माणिक्य की उत्पत्ति में वृद्धि, घृत की कमी, पशुओं में रोग और देश का आर्थिक विकास होता है । गुरुवार के दिन आर्द्रा में सूर्य का प्रवेश हो तो अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, अर्थ वृद्धि, देश में उपद्रव, महामारियों का प्रकोप, गुड़-गेहूँ का भाव महँगा तथा अन्य प्रकार के अनाजों का भाव सस्ता; शुक्रवार में प्रवेश हो तो चातुर्मास में अच्छी वर्षा, पर माघ में वर्षा का अभाव तथा कात्तिक में भी वर्षा की कमी रहती है । इसके अतिरिक्त फसल में साधारणत: रोग, पशुओं में व्याधि और अग्निभय एवं शनिवार को प्रवेश हो तो दुष्काल, वर्षाभाव या अल्पवृष्टि, असमय पर अधिक वर्षा, अनावृष्टि के कारण जनता में अशान्ति, अनेक प्रकार के रोगों की वृद्धि, धान्य का अभाव और व्यापार में भी हानि होती है । वर्षा का परिज्ञान रवि का आर्द्रा में प्रवेश होने पर किया जा सकेगा। पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि प्रवेश के समय चन्द्र नक्षत्र कौन-सा है ? यदि चन्द्र नक्षत्र मृदु और जलसंज्ञक हो तो निश्चयतः अच्छी वर्षा होती है। उग्र तथा अग्नि संज्ञक नक्षत्रों में जल की वर्षा नहीं होती। प्रातःकाल आर्द्रा में प्रवेश होने पर सुभिक्ष और साधारण वर्षा, मध्याह्न काल में प्रवेश होने पर चातुर्मास के आरम्भ में वर्षा, मध्य में कमी और अन्त में अल्पवृष्टि एवं सन्ध्या समय प्रवेश होने पर अतिवृष्टि या अनावृष्टि का योग रहता है । रात्रि में जब सूर्य आर्द्रा में प्रवेश करता है, तो उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है, किन्तु फसल साधारण ही रहती है । अन्न का भाव निरन्तर ऊंचा-नीचा होता रहता है। सबसे
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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