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________________ 128 भद्रबाहुसंहिता संग्रामाश्चानुवर्धन्ते शिल्पकानां सुखोत्तमम्। श्रावणाश्वयुजे मासि तथा कातिकमेव च ॥2॥ अपग्रहं विजानीयान्मासि मासि दशाहिकम्। चौराश्च बलवन्त: स्युरुत्पद्यन्ते च पार्थिवाः ॥43॥ हस्त नक्षत्र में जब प्रथम वर्षा होती है तो 85 आढक प्रमाण जल उस वर्ष बरसता है। निम्न स्थानों की वापियाँ-बावड़ियां पंचवर्णात्मक हो जाती हैं । इस वर्ष में युद्ध की वृद्धि होती है, शिल्पियों को उत्तम सुख प्राप्त होता है। श्रावण, आश्विन और कात्तिक इन तीनों महीनों में से प्रत्येक महीने में 10 दिन तक अपग्रह-अनिष्ट समझना चाहिए । चोर, सेना-योद्धा और नपतियों की उत्पत्ति होती है अर्थात् उस वर्ष चोरों की, सैनिकों की और नृपतियों की कार्यसिद्धि होती है।।41-431 द्वात्रिंशमाढकानि स्युश्चित्रायां च प्रवर्षणम्। चित्रं विन्द्यात् तदा सस्यं चित्रं वर्ष प्रवर्षति ॥4॥ निम्नेषु वापयेद् बीजं स्थलेषु परिवर्जयेत् । मध्यमं तं विजानीयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥45॥ चित्रा नक्षत्र में जिस वर्ष प्रथम वर्षा होती है, उस वर्ष 32 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है । अनाज की उत्पत्ति भी विचित्र रूप से होती है और यह वर्ष भी विचित्र ही होता है। इस वर्ष निम्न स्थानों -आर्द्र स्थानों में बीज बोना चाहिए, ऊंचे स्थलों में नहीं, क्योंकि यह वर्ष मध्यम होता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।44-451 द्वात्रिंशदाढकानि स्युः स्वातौ स्याच्चेत् प्रवर्षणम्। 'वायुरग्निरनावृष्टिः मासमेकं तु वर्षति ॥46॥ स्वाति नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो 32 आढक प्रमाण वृष्टि होती है। इस वर्ष में एक ही महीने तक जल की वर्षा होती है। वायु चलता है, अग्नि बरसती है तथा अनावृष्टि होती है ।।46।। विशाखासु विजानीयात् खारीमेकां न संशयः। सस्यं निष्पद्यते चापि वाणिज्यं पीड्यते तदा ॥47॥ 1. युजो मु० । 2. मासो मु० । 3. मासे मासे मु० । 4. वर्षणं यदा मु० । 5. विनिर्दिशेत् 6. वायुवृष्टिरनावृष्टिमासमेकं च वर्षति मु० । 7. बारिरेव न संशयः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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