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________________ 114 भद्रबाहुसंहिता दिशा में पवन चले तो उस समय वीर-कीति की उपलब्धियाँ बड़ी ही प्रयत्नसाध्य होती हैं ।।52॥ यदा सपरिघा सन्ध्या पूर्वो वात्यनिलो भृशम् । पूर्वस्मिन्नेव दिग्भागे पश्चिमा वध्यते चमूः ।।53॥ यदि प्रात: अथवा सायंकाल की मन्ध्या परिघसहित हो—सूर्य को लांघती हुई मेघों की पंक्ति से युक्त हो-और उस समय पूर्व का वायु अतिवेग से चलता हो तो पूर्व दिशा में ही पश्चिम दिशा की सेना का वध होता है ।। 53।। यदा सपरिघा सन्ध्या पश्चिमो वाति मारुतः । परस्मिन् दिशो भागे पूर्वा स वध्यते चमूः ॥54॥ यदि सन्ध्या सपरिघा–सूर्य को लांघती मेघपंक्ति से युक्त हो और उस समय पश्चिम पवन चले तो पूर्व दिशा में स्थित सेना का पश्चिम दिशा में वध होता होता है ।।54॥ यदा सपरिघा सन्ध्या दक्षिणो वाति मारुतः । अपरस्मिन् दिशो भागे उत्तरा वध्यते चमूः ।।55॥ यदि सन्ध्या सपरिघा-मूर्य को लांघती हुई मेघपंक्ति से युक्त हो-और उस समय दक्षिण का वायु चलता हो तो उत्तर की सेना का पश्चिम में वध होता है ।। 5 5॥ यदा सपरिघा सन्ध्या उत्तरो वाति मारुतः । अपरस्मिन् दिशो भागे दक्षिणा वध्यते चमूः॥56॥ यदि सन्ध्या सपरिघा—सूर्य को लांघती हुई मेघपंक्ति से युक्त हो और उस समय उत्तर का पवन चले तो दक्षिण की सेना का उत्तर दिशा में वध होता है ।।561 प्रशस्तस्तु यदा वातः प्रतिलोमोऽनुपद्रवः। तदा यान् प्रार्थयेत् कामांस्तान प्राप्नोति नराधिपः ॥57॥ ___ जब प्रतिलोम वायु प्रशस्त हो और उस समय कोई उपद्रव दिखाई न पड़ता हो तो राजा जिन कार्यों को चाहता है वे उसे प्राप्त होते हैं--राजा के अभीष्ट की सिद्धि होती है ।। 571 अप्रशस्तो यदा वायुर्नाभिपश्यत्युपद्रवम्। प्रयातस्य नरेन्द्रस्य चमूरियते सदा ॥58॥ यदि वायु अप्रशस्त हो और उस समय कोई उपद्रव दिखाई न पड़े तो युद्ध
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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