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प्रस्तावना
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ग्रह नक्षत्रादि की गतिविधि का भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालीन क्रियाओं के साथ कार्यकारण भाव सम्बन्ध स्थापित किया गया है । इस अव्यभिचरित कार्यकारण भाव से भूत, भविष्यत् की घटनाओं का अनुमान किया है और इस अनुमान ज्ञान को अव्यभिचारी माना है। न्यायशास्त्र भी मानता है कि सुपरीक्षित अव्यभिचारी कार्य-कारण भाव से ज्ञात घटनाएं निर्दोष होती हैं । उत्पादक सामग्री के सदोष होने से ही अनुमान सदोष होता है। अनुमान की अव्यभिचारिता सुपरीक्षित निर्दोष उत्पादक सामग्री पर निर्भर है । अतः ग्रह या अन्य प्राकृतिक कारण किसी व्यक्ति का इष्ट अनिष्ट सम्पादन नहीं करते, बल्कि इष्ट या अनिष्ट रूप में घटित होने वाली भावी घटनाओं की सूचना देते हैं । संक्षेप में ग्रह कर्मफल के अभिव्यंजक हैं । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि आठ कर्म तथा मोहनीय के दर्शन और चरित्र मोह के भेदों के कारण कर्मों के प्रधान नौ भेद जैनागम में बताये गये हैं। प्रधान नौ ग्रह इन्हीं कर्मों के फलों की सूचना देते हैं। ग्रहों के आधार पर व्यक्ति के बन्ध, उदय और सत्त्व की कर्मप्रवृत्तियों का विवेचन भी किया जा सकता है। किसी भी जातक की जन्मकुण्डली की ग्रहस्थिति के साथ गोचर ग्रह की स्थिति का समन्वय कर उक्त बातें सहज में कही जा सकती हैं । अतः ज्योतिष शास्त्र में अव्यभिचारी सूचक निमित्तों का विवेचन किया गया है। इन्हीं सूचक निमित्तों के संहिताग्रन्थों में आठ भेद किये गये है-व्यंजन, अंग, स्वर, भौम, छन्न, अन्तरिक्ष, लक्षण एवं स्वप्न ।
व्यंजन-तिल, मस्सा, चट्टा आदि को देखकर शुभाशुभ का निरूपण करना व्यंजन निमित्तज्ञान है । साधारणतः पुरुष के शरीर में दाहिनी ओर तिल, मस्सा, चट्टा शुभ समझा जाता है और नारी के शरीर में इन्हीं व्यंजनों का बायीं ओर होना शुभ है। पुरुष की हथेली में तिल होने से उसके भाग्य की वृद्धि होती है। पद तल में होने से राजा होता है, पितृरेखा पर तिल के होने से विष द्वारा कष्ट पाता है। कपाल के दक्षिण पार्श्व में तिल होने से धनवान् और सम्भ्रान्त होता है । वामपार्श्व या भौंह में तिल के होने से कार्यनाश और आशा भंग होती है । दाहिनी ओर की भौंह में तिल होने से प्रथम उम्र में विवाह होता है और गुणवती पत्नी प्राप्त होती है । नेत्र के कोने में तिल होने से व्यक्ति शान्त, विनीत और अध्यवसायी होता है। गण्डस्थल या कपोल पर तिल होने से व्यक्ति मध्यम वित्त वाला होता है । परिश्रम करने पर ही जीवन में सफलता मिलती है। इस प्रकार के व्यक्ति प्रायः स्वनिर्मित्त ही होते हैं । गले में तिल का रहना दु:ख सूचक है । कण्ठ में तिल के होने से विवाह द्वारा भाग्योदय होता है, ससुराल से हर प्रकार की सहायता प्राप्त होती है । वक्षस्थल के दक्षिण भाग में तिल होने से कन्याएँ अधिक उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति प्रायः यशस्वी होता है। दक्षिण पंजर में तिल के होने से व्यक्ति कायर होता है। समय पड़ने पर मित्र और हितैषियों को धोखा