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________________ नवमोऽध्यायः 'आदानाच्चैव पाताच्च पचनाच्च विसर्जनात् । मारुत: सर्वगर्भाणां बलवान्नायकश्च सः ॥3॥ आदान, पातन, पचन और विसर्जन का कारण होने से मारुत बलवान् होता है और सब गर्भों का नायक बन जाता है || 3 || दक्षिणस्यां दिशि यदा वायुर्दक्षिणकाष्ठिकः । 'समुद्रानुशयो नाम स गर्भाणां तु सम्भवः ॥4॥ दक्षिण दिशा का वायु जब दक्षिण दिशा में बहता है, तब वह 'समुद्रानुशय' नाम का वायु कहलाता है और गर्भों को उत्पन्न करने वाला भी है ॥4॥ तेन सञ्जनितं गर्भं वायुर्दक्षिण काष्ठिकः । धारयेत् धारणे' मासे पाचयेत् पाचने तथा ॥5॥ 11611 उस समुद्रानुशय वायु से उत्पन्न गर्भ को दक्षिण दिशा का वायु धारण मास धारण करता है तथा पाचन मास में पकाता है ||5|| धारितं पाचितं गर्भं वायुरुत्तरकाष्ठिकः । प्रमुंचति यतस्तोयं वर्षं तन्मरुदुच्यते ||6|| उस धारण किये तथा पाक को प्राप्त हुए मेघ गर्भ को चूंकि उत्तर दिशा का ता है अतएव वर्षा करने वाले उस वायु को 'मरुत्' कहते 105 आषाढीपूर्णिमायां तु पूर्ववातो यदा प्रवाति दिवस सर्वं सुवृष्टिः सुषमा भवेत् । तदा ॥7॥ आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पूर्व दिशा का वायु यदि सारे दिन चले तो वर्षा काल अच्छी वर्षा होती है और यह वर्ष अच्छा व्यतीत होता है || 7 || वाप्यानि सर्वबीजानि जायन्ते निरुपद्रवम् । शूद्राणामुपघाताय सोऽत्र लोके परत्र च ॥8॥ उक्त प्रकार के वायु में बोये गये सम्पूर्ण बीज उत्तम रीति से उत्पन्न होते हैं । परन्तु शूद्रों के लिए यह वायु इस लोक और परलोक में उपघात का कारण 11811 1. अवातं चैव वातं च पातनश्च विसर्जन: मु० A D 2. घारायद्गारणेमेसे मु० A. 3. तिर्यशो मु० B. । 4. मध्यम - मु० C. । 5. वारणे मु० A। 6. सुवृष्टिस्तु तदा मता मु० । 7. सर्वजीवानि मु० B. । 8. निरुपद्रवः मु० C. ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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