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अष्टमोऽध्यायः
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बादल, उल्का और सन्ध्या का जैसा निरूपण किया गया है, उसी प्रकार का संक्षेप और विस्तार से मेघों का भी समझना चाहिए ।।261
उल्कावत् साधनं ज्ञेयं मेघेष्वपि तदादिशेत् ।
अत: परं प्रवक्ष्यामि वातानामपि लक्षणम् ॥27॥ इस मेघवर्णन अध्याय का भी उल्का की तरह ही फलादेश अवगत कर लेना चाहिए। इसके पश्चात् अब आगे वायु-अध्याय का निरूपण किया जायगा ॥27॥
इति नम्रन्थे भद्रबाहु के निमित्ते मेघकाण्डो नामाष्टमोऽध्यायः । विवेचन–मेघों की आकृति, उनका काल, वर्ण, दिशा प्रभृति के द्वारा शुभाशुभ फल का निरूपण मेघ-अध्याय में किया गया है। यहाँ एक विशेष बात यह है कि मेघ जिस स्थान में दिखलाई पड़ते हैं उसी स्थान पर यह फल विशेष रूप से घटित होता है। इस अध्याय का प्रयोजन भी वर्षा, सुकाल, फसल की उत्पत्ति इत्यादि के सम्बन्ध में ही विशेष रूप से फल बतलाना है। यों तो पहले के अध्यायों द्वारा भी वर्षा और सुभिक्ष सम्बन्धी फलादेश निरूपित किया गया है, पर इस अध्याय में भी यही फल प्रतिपादित है। मेघों की आकृतियाँ चारों वर्ण के व्यक्तियों के लिए भी शुभाशुभ बतलाती हैं । अतः सामाजिक और वैयक्तिक इन दोनों ही दृष्टिकोणों से मेघों के फलादेश का विवेचन किया जाएगा।
मेघों का विचार ऋतु के क्रमानुसार करना चाहिए । वर्षा ऋतु के मेघ केवल वर्षा की सूचना देते हैं । शरद् ऋतु के मेघ शुभाशुभ अनेक प्रकार का फल सूचित करते हैं । ग्रीष्म ऋतु के मेघों से वर्षा की सूचना तो मिलती ही है, पर ये विजय, यात्रा, लाभ, अलाभ, इष्ट, अनिष्ट, जीवन, मरण आदि को भी सूचित करते हैं। मेघों की भी भाषा होती है। जो व्यक्ति मेघों की भाषा-गर्जना को समझ लेते हैं, वे कई प्रकार के महत्त्वपूर्ण फलादेशों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पश, पक्षी और मनुष्यों के समान मेघों की भी भाषा होती है और गर्जन-तर्जन द्वारा अनेक प्रकार का शुभाशुभ प्रकट हो जाता है । यहाँ सर्वप्रथम ग्रीष्म ऋतु के मेघों का निरूपण किया जाएगा । ग्रीष्म ऋतु का समय फाल्गुन से ज्येष्ठ तक माना जाता है । यदि फाल्गुन के महीने में अंजन के समान काले-काले मेघ दिखलाई पड़ें तो इनका फल दर्शकों के लिए शुभ, यशप्रद और आर्थिक लाभ देने वाला होता है। जिस स्थान पर उक्त प्रकार के मेघ दिखलाई पड़ते हैं, उस स्थान पर अन्न का भाव सस्ता होता है, व्यापारिक वस्तुओं में हानि तथा भोगोपभोग की वस्तुएं प्रचुर
1. सर्व मु० C. 1 2. समा मु. C. । 3. बात० मु० B. D. I