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________________ सप्तमोऽध्यायः 85 सन्ध्याओं के लक्षण का निरूपण किया जाता है । ये सन्ध्याएँ दो प्रकार की होती हैं-प्रशस्त और अप्रशस्त । निमित्त शास्त्र के तत्त्वों के अनुसार उनका फल अवगत करना चाहिए ।।1। उद्गच्छमाने चादित्यः यदा सन्ध्या विराजते। नागराणां जयं विन्द्यादस्तं गच्छति यायिनाम् ॥2॥ सूर्योदय के समय की सन्ध्या नागरों को और सूर्यास्त के समय की सन्ध्या याथी के लिए जय देने वाली होती है ।।2।। उद्गच्छमाने चादित्ये शुक्ला सन्ध्या यदा भवेत् । उत्तरेण गता सौम्या ब्राह्मणानां जयं विदुः ॥3॥ सूर्योदय के समय की सन्ध्या यदि श्वेत वर्ण की हो और वह उत्तर दिशा में हो तथा सौम्य हो तो ब्राह्मणों के लिए जयदायक होती है ॥3॥ उद्गच्छमाने चाऽदित्ये रक्ता सन्ध्या यदा भवेत्। पूर्वेण च गता सोम्या क्षत्रियाणां जयावहा ॥4॥ सूर्योदय के समय लाल वर्ण की सन्ध्या हो और वह पूर्व दिशा में स्थित हो तथा सौम्य हो तो क्षत्रियों को जय देने वाली होती है ।।4।। उद्गच्छमाने चाऽदित्ये पीता सन्ध्या यदा भवेत् । दक्षिणेन गता सौम्या वैश्यानां सा जयावहा॥5॥ सूर्योदय के समय पीत वर्ण की सन्ध्या यदि हो और वह दक्षिण दिशा का आश्रय करे तथा सौम्य हो तो वैश्यों के लिए जयदायी होती है ।।5।। उद्गच्छमाने चादित्ये कृष्णसन्ध्या यदा भवेत् । अपरेण गता सौम्या शूद्राणां च जयावहा' ॥6॥ __सूर्योदय के समय कृष्ण वर्ण की सन्ध्या यदि हो और वह पश्चिम दिशा का आश्रय करे तथा सौम्य हो तो शूद्रों के लिए जयकारक होती है ।।6।। सन्ध्योत्तरा जयं राज्ञः ततः कुर्यात् पराजयम् । पूर्वा क्षेमं सुभिक्षं च पश्चिमा च' भयंकरा ॥7॥ ___1. वादित्ये मु । 2. जायिनाम् मु० C. । 3. वादित्ये मु० । 4. गतो मु० । 5. चा० मु. C. । 6. यथावहा मु० B. जयंकरा: मु० C.। 7. यथावहा मु. B. जयंकरा मु० C.। 8. कुर्यात् दक्षिणा च पराजयम् मु० । 9. तु मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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