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________________ 58 भद्रबाहुसंहिता विशेष रूप से; चौकोर रूप में आच्छादित करे तो तिलहन की फसल और अन्य प्रकार की फसलों में गड़बड़ी एवं पंच भुजाकार आच्छादित करे तो गन्ना, घी, मधु आदि की उत्पत्ति प्रचुर परिणाम में तथा रूई की फसल को विशेष क्षति होती है । दशमी को सूर्यास्त काल में कृष्ण वर्ण का परिवेष दिखलाई पड़े तो वर्षा का अभाव, फसल की क्षति और पशुओं में रोग फैलता है । पष्ठी और अष्टमी का फल जो उदय काल का है, वही अस्तकाल का भी है। विशेषता इतनी ही है कि उक्त तिथियों में अस्तकालीन परिवेष द्वारा प्रत्येक वस्तु की उपज अवगत की जा सकती है। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और पूर्णिमा को दोपहर के पश्चात् सूर्य के चारों ओर परिवेष दिखलाई पड़े तो सुभिक्ष, धान्य और तृण की विशेष उत्पत्ति होती है। श्रावण मास का सूर्य परिवेष फसल के लिए हानिकारक माना गया है। भौमादि कोई ग्रह और सूर्य नक्षत्र यदि एक ही परिवेप में हों तो तीन दिन में वर्षा होती है। यदि शनि परिवेप मंडल में हो तो छोटे धान्य को नष्ट करता है और कृषकों के लिए अत्यन्त अनिष्टकारी होता है, तीव्र पवन चलता है। श्रावणी पूर्णिमा को मेघाच्छन्न आकाश में सूर्य का परिवेप दृष्टिगोचर हो तो अत्यन्त अनिष्टकारक होता है । भाद्रपद मास में सूर्य के परिवेप का फल केवल कृष्णपक्ष की 31617110111 और 13 तथा शुक्ल पक्ष में 2151718113114115 तिथियों में मिलता है । कृष्णपक्ष में परिवेष दिखलाई दे तो साधारण वर्षा की सूचना के साथ कृषि के जघन्य फल को सूचित करता है। विशेषतः कृष्णपक्ष की एकादशी को सूर्य परिवेष दिखलाई पड़े तो नाना प्रकार के धान्यों की समृद्धि होती है, वर्षा समय पर होती है । अनाज का भाव भी सस्ता रहता है और जनता में सुख शान्ति रहती है। शुक्ल पक्ष की द्वितीया और पंचमी तिथि का परिवेष सूर्योदय या मध्याह्न काल में दिखलाई पड़े तो साधारणतः फसल अच्छी और अपराह्न काल में दिखलाई पड़े तो फसल में कमी ही समझनी चाहिए। सप्तमी और अष्टमी को अपराह्न काल में परिवेष दिखलाई पड़े तो वायु की अधिकता समझनी चाहिए। वर्षा के साथ वायु का प्राबल्य रहने से वर्षा की कमी रह जाती है और फसल में न्यूनता रह जाती है। यदि चार कोनों वाला परिवेष इसी महीने में सूर्य के चारों ओर दिखलाई पड़े तो संसार में अपकीति के साथ फसल में भी कमी रहती है । आश्विन मास का सूर्य परिवेष केवल फसल में ही कमी नहीं करता, बल्कि इसका प्रभाव अनेक व्यक्तियों पर भी पड़ता है । सूर्य का परिवेष यदि उदय काल में हो और परिवेश के निकट बुध या शुक्र कोई ग्रह हो तो शुभ फसल की सूचना समझनी चाहिए । रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका और मृगशिर के नक्षत्र परिवेष की परिधि में आते हों तो पूर्णतया वर्षा का अभाव, धान्य की कमी, पशुओं को कष्ट
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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