SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयोध्यायः 23 पूर्व परम्परा के अनुसार फलादेश का निरूपण करता हूँ। यदि उल्का अग्रभाग से गिरे तो देश के मार्ग का नाश करती है। यदि मध्यभाग से गिरे तो देश के मध्यभाग के और पूंछ भाग से गिरे तो देश के पृष्ठ भाग के विनाश की सूचना देती है। मध्यम-समान साधारण अवस्थावाली उल्का का पतन भी प्रशस्त नहीं होता है ।।13-14।। 1स्नेहवत्योऽन्यगामिन्यो प्रशस्ता: स्युः प्रदक्षिणा:। उल्का यदि पतेच्चित्रा पक्षिणामहिताय सा॥15॥ ___ मध्यम उल्का स्नेहयुक्त होती हुई दक्षिण मार्ग से गमन करे तो वह प्रशस्त है और चित्र-विचित्र रंग की मध्यम उल्काएँ वाम मार्ग से गमन करें तो पक्षियों के लिए अहित कारक होती हैं ।।15।। श्याम-लोहितवर्णा च सद्यः कुर्याद् महद् भयम् । उल्कायां भस्मवर्णायां पर वक्राऽऽगमो भवेत् ॥16॥ काली और लालवर्ण की उल्का गिरे तो वह शीघ्र ही महाभय की सूचना देती है तथा भस्मवर्ण की उल्का परचक्र का आना सूचित करती है ।।16।। अग्निमग्निप्रभा कुर्याद् व्याधिञ्जिष्ठसन्निभा। नोला कृष्णा च धूम्रा च शुक्ला वाऽसिसमद्युतिः ॥17॥ उल्का नीचैः समा स्निग्धा पतन्ति भयमादिशेत ॥17॥ शुक्ला रक्ता च पीता च कृष्णा चापि यथाक्रमम् । चतुर्वर्णा विभक्तव्या साधुनोक्ता यथाक्रमन् ॥18॥ अग्नि की प्रभावशाली उल्का अग्नि का भय करती है। मंजिष्ठ के समान रंगवाली उल्का व्याधि की सूचना देती है । नील, कृष्ण, धूम्र तलवार के समान द्यु तिवाली उल्का नीच प्रकृति-अधम होती है । स्निग्ध उल्का सम प्रकृतिवाली होती है। शुक्ल, रक्त, पीत और कृष्ण इन वर्णोवाली उल्का क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण में विभाजित समझनी चाहिए। ये चारों वर्णवाली उल्काएँ क्रमशः ब्राह्मणादि चारों वर्गों को भय की सूचना देती हैं, ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है। अभिप्राय यह है कि श्वेतवर्ण की उल्का ब्राह्मण संज्ञक है, इसका फलादेश ब्राह्मण वर्ण के लिए विशेष रूप से और सामान्यतः अन्य वर्णवालों को भी प्राप्त होता है। इसी प्रकार रक्त से क्षत्रिय, पीत से वैश्य और कृष्ण से शूद्रवर्ण के लिए प्रधानतः फल और गौण रूप से अन्य वर्णवालों को भी फलादेश प्राप्त होता है ।।17-18।। 1. स्नेहवन्तो आ० । 2. दक्षिणा मु. A. D. । 3. महाताय मु. C. । 4. एतदर्ण तदादिशेत् मु०, B. पतेत् वर्ष तदा ss दिशेत्, मु. D. ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy