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द्वितीयोऽध्यायः
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तो प्रतीत होगा कि बहुतेरी उल्काएँ एक ही बिन्दु से चलती हैं, पर आरम्भ में अदृश्य रहने के कारण वे हमें एक बिन्दु से आती हुई नहीं जान पड़तीं। केवल उल्का-झड़ियों के समान ही उनके एक बिन्दु से चलने का आभास हमें मिलता है । उस बिन्दु को जहाँ से उल्काएं चलती हुई मालूम पड़ती हैं, संपात मूल कहते हैं । आधुनिक ज्योतिष उल्काओं को केतुओं के रोड़े, टुकड़े या अंग मानता है। अनुमान किया जाता है कि केतुओं के मार्ग में असंख्य रोड़े और ढोंके बिखर जाते हैं। सूर्य गमन करते-करते जब इन रोड़ों के निकट से जाता है तो ये रोड़े टकरा जाते हैं और उल्का के रूप में भूमि में पतित हो जाते हैं। उल्काओं की ऊँचाई पृथ्वी से 50-70 मील के लगभग होती है। ज्योतिषशास्त्र में इन उल्काओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनके पतन द्वारा शुभाशुभ का परिज्ञान किया जाता
उल्का के ज्योतिष में पाँच भेद हैं—धिष्ण्या, उल्का, अशनि, विद्युत् और तारा। उल्का का 15 दिनों में, धिष्ण्या और अशनि का 45 दिनों में एवं तारा और विद्युत् का छ: दिनों में फल प्राप्त होता है। अशनि का आकार चक्र के समान है, यह बड़े शब्द के साथ पृथ्वी फाड़ती हुई मनुष्य, गज, अश्व, मृग, पत्थर, गृह, वृक्ष और पशुओं के ऊपर गिरती है। तड़-तड़ शब्द करती हुई विद्य त अचानक प्राणियों को त्रास उत्पन्न करती हुई कुटिल और विशाल रूप में जीवों और ईधन के ढेर पर गिरती है। । पतली छोटी पूँछवाली धिष्ण्या जलते हए अंगारे के समान चालीस हाथ तक दिखलाई देती है। इसकी लम्बाई दो हाथ की होती है। तारा ताँबा, कमल, ताररूप और शुक्ल होती है, इसकी चौड़ाई एक हाथ और खिंचती हुई-सी आकाश में तिरछी या आधी उठी हई गमन करती है। प्रतनुपुच्छा घिशाला उल्का गिरते-गिरते बढ़ती है, परन्तु इसकी पंछ छोटी होती जाती है, इसकी दीर्घता पुरुष के समान होती है, इसके अनेक भेद हैं। कभी यह प्रेत, शास्त्र, खर, करभ, नाका, बन्दर, तीक्ष्ण दंतवाले जीव और मृग के समान आकारवाली हो जाती है। कभी गोह, साँप और धमरूप वाली हो जाती है। कभी यह दो सिरवाली दिखलाई पड़ती है। यह उल्का पापमय मानी गई है।
कभी ध्वज, मत्स्य, हाथी, पर्वत, कमल, चन्द्रमा, अश्व, तप्तरज और हंस के समान दिखलायी पड़ती है, यह उल्का शुभकारक पुण्यमयी है। श्रीवत्स, वज्र, शंख और स्वस्तिक रूप में प्रकाशित होनेवाली उल्का कल्याणकारी और सुभिक्षदायक है। अनेक वर्णवाली उल्काएँ आकाश में निरन्तर भ्रमण करती रहती हैं।
जिन उल्काओं के सिर का भाग मकर के समान और पूंछ गाय के समान