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________________ व्यापक स्वरूप है, जिसके अनुसार इन्द्रिय, मन एवं बुद्धि से होने वाला ज्ञान मतिज्ञान है। स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान भी मतिज्ञान के ही रूप हैं। इस पर आवरण आना मति ज्ञानावरण है। इन्द्रिय और मन से इनके सम्मुख आए दृश्य जगत के पदार्थों के विषय में जानकारी के लिए ऊहापोह करना, विचार-विमर्श करना, अन्वेषण-गवेषण करना, स्मरण करना, चिंतन करना आदि समस्त जानकारी आभिनिबोधक व मतिज्ञान में ही गर्भित हैं। भाषा, साहित्य, वाणिज्य, कला, आदि समस्त दृश्यमान (रूपी) जगत से संबंधित ज्ञान मतिज्ञान है एवं मतिज्ञान की उपयोगिता का विस्तार है। ज्ञान गुण की उपयोगिता के बढ़ने, घटने व अभाव होने से ज्ञान गुण घटता-बढ़ता नहीं है, उदाहरणार्थ:कोई व्यक्ति अपने चक्षु से वस्तुओं को देख रहा है अर्थात् चक्षुरिन्द्रिय मतिज्ञान का उपयोग कर रहा है। इस समय इसके श्रोत्रेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय आदि अन्य इन्द्रियों के मतिज्ञान का, श्रुतज्ञान का, दर्शन का अंश मात्र भी उपयोग नहीं हो रहा है। उपयोग नहीं होने से, उपयोग का अभाव होने से, इसके श्रोत्रेन्द्रिय मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, दर्शन आदि गुणों का अभाव हो जाता हो, सो नहीं है। इन गुणों का आवरण घट-बढ़ जाता हो, ऐसी बात भी नहीं है। उसे चक्षुइन्द्रिय से अधिक स्पष्ट दिखने से, अधिक संख्या में वस्तुओं के दिखने से उसके चक्षुइन्द्रिय मतिज्ञान के आवरण में कमी हो गई हो, उसका क्षयोपशम बढ़ गया हो, ऐसा भी नहीं है। यदि वस्तुओं के दिखने में या अधिक वस्तुएँ दिखने में मतिज्ञान का क्षयोपशम कारण माना जाय, तो चक्षु-मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम का हेतु ऐनक हो जायेगा क्योंकि ऐनक से अधिक दिखने लगता है, ऐनक हटाने से दिखना बन्द व मंद हो जाता है। अतः ऐनक जैसे जड़ पदार्थ को ज्ञान गुण के क्षयोपशम का कारण मानना होगा, जो उचित नहीं है। कारण कि ज्ञान आत्मा का गुण है। इस गुण की वृद्धि व हास ऐनक- लेंस जैसी बाह्य व जड़ वस्तु पर निर्भर मानना, जड़ को चेतन के गुणों को उत्पन्न करने वाला मानना होगा, जो न तो आगम सम्मत है, न कर्म-सिद्धान्त सम्मत है और न युक्तियुक्त है। तात्पर्य यह है कि कोई व्यक्ति दृश्यमान जगत से संबंधित साहित्य, वाणिज्य, कला, विज्ञान आदि विषयों में पी-एच.डी. या डी.लिट् हो जाये, तो इसका सम्बन्ध ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की न्यूनता व अधिकता से नहीं है। ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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