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________________ क्रोध, मान, माया एवं लोभ, 9-12. प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ, 13-16. संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ । नोकषाय के 9 भेद हैं- 1. हास्य 2. रति 3. अरति 4. भय 5. शोक 6. जुगुप्सा 7. पुरुषवेद 8. स्त्रीवेद 9. नपुंसकवेद। लोढ़ा साहब के अनुसार राग-द्वेष के उत्पन्न होने से चित्त का कुपित, क्षुब्ध या अशान्त होना क्रोध कषाय है। वस्तु, व्यक्ति एवं परिस्थिति से तादात्म्य होना, उनसे जुड़ जाना तथा उनसे अहंभाव होना मान कषाय है। अनित्य पर वस्तुओं के प्रति ममत्व या अपनेपन का सम्बन्ध होना माया कषाय है तथा प्राप्त वस्तु व परिस्थिति को बनाये रखने का भाव लोभ कषाय है। संग्रहवृत्ति लोभ की द्योतक है। प्राप्त वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति के भोग से संतुष्ट न होकर सुखभोग के लिए नवीन-नवीन वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि का अंत कभी नहीं हो उनको सदा बनाये रखने की इच्छा अनन्तानुबंधी है। विषयसुख की दासता तथा लोलुपता में आबद्ध प्राणी द्वारा दुःखों से छूटने, असंयम को त्यागने अथवा कहें कि प्रत्याख्यान करने का भाव न होना अप्रत्याख्यानावरण है। विषयभोगों का पूर्ण त्याग कर संयमधारण न करना प्रत्याख्यानावरण कषाय है। विषयभोगों की स्फुरणा होना, उनके प्रति आकर्षण होना उनके राग की आग में जलना संज्वलन कषाय है। संक्षेप में अनन्तानुबंधी क्रोध आदि 16 भेदों का स्वरूप इस प्रकार है__अपने सुख में बाधा उत्पन्न करने वाले के प्रति निरन्तर आजीवन वैरभाव रखना, उसे क्षमा न करना अनन्तानुबंधी क्रोध है। क्रोध को त्यागने या कम करने का भाव उत्पन्न न होना अप्रत्याख्यानावरण क्रोध है। क्रोध | को त्यागकर क्षमा व शान्ति धारण करने से प्रसन्नता, निश्चिन्तता, निर्भयता आदि सुखों की उपलब्धि होती है, यह जानते हुए भी क्षमा धारण न करना प्रत्याख्यानावरण क्रोध है। कामना उत्पत्ति से राग-द्वेष की आग का प्रज्वलित होना संज्वलन क्रोध है। देह, धन, बल, बुद्धि, विद्या आदि की उपलब्धि को ही अपना जीवन मानना तथा उन्हें अनन्तकाल तक बनाये रखने की अभिलाषा रखना अनन्तानुबंधी मान है। मान के कारण उत्पन्न दीनता, गर्व, जड़ता, पराधीनता, हृदय की कठोरता आदि दुःखों की उपेक्षा LXX आमुख
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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