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________________ कर्म-सिद्धान्त में निरूपित संक्रमण - प्रक्रिया को आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में मार्गान्तरीकरण (नइसपउंजपवद व उमदजंस मदमतहल) कहा जा सकता है । यह मार्गान्तरीकरण या रूपान्तरण दो प्रकार का है1. अशुभ प्रकृति का शुभ प्रकृति में और 2. शुभ प्रकृति का अशुभ प्रकृति में | शुभ (उदात्त ) प्रकृति का अशुभ (कुत्सित) प्रकृति में रूपान्तरण अनिष्टकारी है और अशुभ (कुत्सित) प्रकृति का शुभ (उदात्त ) प्रकृति में रूपान्तरण हितकारी है। वर्तमान मनोविज्ञान में कुत्सित प्रकृति के उदात्त प्रकृति में रूपान्तरण को उदात्तीकरण कहा जाता है। वह उदात्तीकरण संक्रमण करण का ही एक अंग है, एक अवस्था है । आधुनिक मनोविज्ञान में उदात्तीकरण पर विशेष अनुसंधान हुआ है तथा प्रचुर प्रकाश डाला गया है। राग या कुत्सित काम भावना का संक्रमण या उदात्तीकरण, मन की प्रवृत्ति को मोड़कर श्रेष्ठ कला, सुन्दर चित्र, महाकाव्य या भाव-भक्ति में लगाकर किया जा सकता है। वर्तमान में उदात्तीकरण प्रक्रिया का उपयोग व प्रयोग कर उद्दण्ड अनुशासनहीन, तोड़-फोड़ करने वाले अपराधी मनोवृत्ति के छात्रों एवं व्यक्तियों को उनकी रुचि के किसी रचनात्मक कार्य में लगा दिया जाता है। फलस्वरूप वे अपनी हानिकारक व अपराधी प्रवृत्ति का त्याग कर समाजोपयोगी कार्य में लग जाते हैं, अनुशासन प्रिय नागरिक बन जाते हैं। कुत्सित प्रकृतियों को सद् प्रकृतियों में संक्रमित या रूपान्तरित करने के लिए आवश्यक है कि पहले व्यक्ति को इन्द्रिय-भोगों की वास्तविकता का उसके वर्तमान जीवन की दैनिक घटनाओं के आधार पर बोध हो । भोग का सुख क्षणिक है, नश्वर है व पराधीनता में आबद्ध करने वाला है, परिणाम में नीरसता या अभाव ही शेष रहता है । भोग जड़ता व विकार पैदा करने वाला है। नवीन कामनाओं को पैदा कर चित्त को अशांत बनाने वाला है। संघर्ष, द्वन्द्व, अन्तर्द्वन्द्व पैदा करने वाला है । भोग सुख में दुःख अन्तर्गर्भित रहता ही है । भोगों के सुख के त्याग से तत्काल शान्ति, स्वाधीनता, प्रसन्नता की अनुभूति होती है। इस प्रकार भोगों के क्षणिकअस्थायी सुख के स्थान पर हृदय में स्थायी सुख प्राप्ति का भाव जागृत किया जाय । भावी दुःख से छुटकारा पाने के लिये वर्तमान के क्षणिक सुख के भोग का त्याग करने की प्रेरणा दी जाय तो इससे आत्म-संयम की प्राक्कथन XXXIII
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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