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________________ का होना ही सच्ची समृद्धि है। ऐसी समृद्धि के स्वामी में आनंद का सागर हिलोरें लेने लगता है। इसके विपरीत जो इन्द्रियों के क्षणिक सुखों का दास है वह सदैव अभाव, चिन्ता, पराधीनता, खिन्नता, हीनता आदि अगणित दुःखों से, विषादों से घिरा रहता है। उसके पास बाहर में कितनी ही भोग्य वस्तुएँ हों, धन संपत्ति हो, पूजा प्रतिष्ठा हो, अंतर में वह रिक्त होता है, उसे आंतरिक नीरसता सदैव घेरे रहती है। वह उसे भुलाने के लिये अपने को नशे में, एक के बाद दूसरे भोग के रस में लगाता रहता है। वह आंतरिक दृष्टि से घोर दरिद्र होता है। सद्गुणों का क्रियात्मक रूप सद्प्रवृत्ति ही सच्ची समृद्धि है, भौतिक विकास है और दुर्गुण-दुष्प्रवृत्ति समस्त दुःखों व दरिद्रता की जड़ है, भौतिक अवनति है। जिसके पास सद्गुणों की पूँजी है वही समृद्ध है, पुण्यवान है। जो वासनाओं का दास है वही दरिद्र है, पुण्यहीन है। सद्प्रवृत्तियों का बाह्य फल भौतिक विकास है और आन्तरिक फल आध्यात्मिक विकास है। 238 आत्म-विकास, सम्पन्नता और पुण्य-पाप
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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