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________________ हैं। शेष वेदनीय की 2, आयुकर्म की 4, नाम कर्म की 67 और गौत्र कर्म की 2 प्रकृतियाँ- इन चार कर्मों की ये कुल 75 प्रकृतियाँ अघाती हैं। इन्हीं 75 प्रकृतियों में सातावेदनीय, तिर्यंच-मनुष्य- देव आयु, उच्च गोत्र तथा नाम कर्म की 37 शुभ प्रकृतियाँ ये कुल 42 प्रकृतियाँ पुण्य कर्म की हैं, शेष प्रकृतियाँ पाप कर्म की हैं। अघाती कर्म के पुण्य-पाप की किसी भी प्रकृति के बंध, उदय व सत्ता से जीव के किसी भी गुण का घात नहीं होता है। अतः ये साध ना में, आत्म-विकास में व मुक्ति के मार्ग में बाधक नहीं हैं। यही कारण है कि चौदहवें अयोगी गुणस्थान के द्विचरम समय तक चारों अघाती कर्मों की पुण्य-पाप की प्रकृतियों की सत्ता रहने पर भी केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि क्षायिक लब्धियाँ प्रकट होने में बाधा उपस्थित नहीं होती। अपितु मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति आदि पुण्य-प्रकृतियों के उदय की अवस्था में ही साधुत्व (महाव्रत) तथा वीतरागता की साधना एवं केवलज्ञान, केवलदर्शन की उत्पत्ति संभव है। तात्पर्य यह है कि पुण्य कर्म-प्रकृतियाँ मुक्ति-प्राप्ति की साधना में बाधक नहीं हैं। कर्म-सिद्धान्त का यह नियम है कि वेदनीय, गोत्र व नाम कर्म की सातावेदनीय, उच्चगोत्र, सुभग, आदेय आदि पुण्य प्रकृतियों का अक्षुण्ण व उत्कृष्ट अनुभाग बंध होने से पूर्व इन पुण्य-प्रकृतियों का बंध रुक जाने पर इनकी विरोधिनी असातावेदनीय, नीचगोत्र, दुर्भग, अनादेय आदि पाप प्रकृतियों का आस्रव व बंध अवश्य होता है अर्थात् पुण्य-प्रकृतियों के जीवन पर्यन्त के लिए उत्कृष्ट अनुभाग बंध के स्वामी वीतराग जीवों को छोड़कर शेष जीवों के पुण्य प्रकृतियों का बंध रुक जाने पर उनकी विरोधिनी पाप प्रकृतियों का बंध | नियम से होता है। अतः कर्म सिद्धान्तानुसार पुण्य का विरोध व निरोध करना पाप कर्मों का आह्वान करना व आमंत्रण देना है। 'कर्मसिद्धान्त में पुण्य-पाप' विषयक उपर्युक्त निरूपण श्वेताम्बर एवं दिगम्बर कर्म साहित्य में सर्वमान्य है। कर्म-सिद्धान्त सम्बन्धी श्वेताम्बर साहित्य कर्म-ग्रंथ, पंच-संग्रह, कर्म-प्रकृति, भगवती सूत्र, पन्नवणा सूत्र आदि ग्रंथों में तथा दिगंबर साहित्य षट्खण्डागम व उसकी धवला-महाध विला टीका, गोम्मटसार, कषायपाहुड व उसकी चूर्णि तथा जयधवला टीका आदि ग्रंथों में कहीं पर भी, कुछ भी मतभेद नहीं है। 230 कर्म सिद्धान्त और पुण्य-पाप
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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