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________________ उन गुणों का भी बाहर में मिथ्या प्रदर्शन करता है। (6) उसे दूसरों के दोष दिखाई देते हैं। (7) दूसरों के गुणों की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता है। (8) यदि दूसरों में गुण दिखाई दें तब भी उन्हें प्रकट नहीं करता है। (9) वह दूसरों को उनके दोष दिखाकर दूर करने की शिक्षा देने को आतुर रहता है। (10) उसे अपने गुण-गौरव का गान अच्छा लगता है उसे प्रतिष्ठा का व्यामोह हो जाता है। (11) उसमें गुणों से अभिन्नता नहीं हो पाती। (12) वह गुण नहीं होने पर भी गुणों को ओढ़ता है, आरोपित करता है। गुणों का अभिमान सबसे भयंकर दोष है। कारण कि यह दोष गुण के गर्व व गौरव के में रूप में अर्थात् गुण के रूप में प्रकट होता है। जो दोष, दोष के रूप में ज्ञात हो या प्रकट हो उसे दूर करने की व्याकुलता जग सकती है, परन्तु जो दोष गुण के रूप में प्रकट हो उस दोष को उसे दूर करने की भावना या विचार ही नहीं आता है। अपितु अधिक बढ़ाने का प्रयत्न होता है। अभिमान या मद नशा है। इससे स्वरूप-विस्मृति होती है, जड़ता आती है। अपने से अधिक बड़े आदमियों, गुणीजनों को देखकर 1. ईा और 2. हीन भावना उत्पन्न होती है। यह नीच गोत्र है। अपने गुणों का गर्व व गान करने वाला निंदनीय होता है, जो नीच गोत्र का द्योतक है। जो साधक अपने को दूसरों से श्रेष्ठ, गुणी एवं ज्ञानी होने का अभिमान रखता है, दूसरों के दोषों को देखता रहता है और उनको दूर करने के लिए दूसरों को उपदेश देता रहता है और अपने दोषों को दूर करने का प्रयत्न नहीं करता है, उसका चित्त कभी शुद्ध नहीं होता है। यही कारण है कि वह अनेक वर्षों तक साधना करते हुए भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है। जो मनुष्य नेता या प्रचारक बन जाता है या उपदेष्टा बन जाता है उसका चित्त शुद्ध होना अति कठिन है, क्योंकि वह दूसरों के दोषों को देखने लगता है। वह अपने दोषों को प्रकट नहीं कर सकता। अपने दोषों को छिपाना उसका स्वभाव बन जाता है। दूसरों के दोषों को देखना तथा उनके गुणों को छिपाना, अपने गुणों का अभिमान तथा प्रदर्शन करना, ये सभी चित्त की अशुद्धि के कारण हैं। इसलिए नेता या गुरु बनने को पतन का हेतु माना गया है। साधक को इस बुराई से बचना चाहिए। गुण का 192 गोत्र कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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