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________________ 5. 6. जिस शरीर की आकृति कुबड़े के रूप में हो, जिसमें छाती आगे निकली हुई हो, उसे कुब्जक संस्थान कहते हैं । जिसका पूरा शरीर प्रमाण रहित हो, सभी अवयव बेडोल आकृति के हों, उसे हुंडक संस्थान कहते हैं । वर्णादि चतुष्क इसमें वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श की गणना होती है। वर्ण- जिस कर्म के उदय से शरीर में काला, नीला, पीला, लाल, श्वेत वर्ण प्राप्त हो उसे वर्ण नाम कहा है। गंध - जिस कर्म से शरीर में सुगन्ध व दुर्गन्ध की प्राप्ति हो उसे गंध नाम कहते हैं । रस-जिस कर्म से शरीर के पुद्गल तिक्त, कटु, कसैले खट्टे मीठे रस रूप में परिणत हों उसे रस नाम कहते हैं । स्पर्श- शरीर में कर्कश, मृदु, गर्म, ठंडा, स्निग्ध, रुक्ष, लघु, भारी स्पर्श वाले अंग- प्रत्यंगों का होना स्पर्श नाम है । वर्णादि अपेक्षाकृत शुभ और अशुभ माने गये हैं। शुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श शुभ नाम कर्म के उदय से और अशुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श अशुभ नाम कर्म के उदय से होते हैं । व्यवहार में कृष्ण और नील वर्ण, गंध में दुरभिगंध, रस में तिक्त और कटु तथा स्पर्श में खुरदरा, भारी, लूखा और ठंडा, इनको अशुभ प्रकृतियों के रूप से माना गया है। इसे सामान्य कथन समझना चाहिये । विशेष रूप से सभी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श शुभ भी होते हैं। जैसे आँख का तारा व सिर के बाल काले होकर भी शुभ हैं। इनका श्वेत (सफेद) होना अशुभ माना जाता है। इस प्रकार वर्ण, गंध, रस और वर्ण की सभी प्रकृतियाँ शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की मानी गई है। आनुपूर्वी नामकर्म इस कर्म के उदय से जीव विग्रहगति द्वारा अपने नये उत्पत्तिस्थान पर पहुँचता है। इसका उदय तभी होता है जब जीव को मरकर विषम श्रेणी में स्थित उत्पत्ति स्थान में जन्म लेना होता है। यदि उत्पत्ति स्थान समश्रेणी में हुआ तो आनुपूर्वी के उदय की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। उस स्थिति में तो जीव स्वयं ही, पूर्व-शरीर से प्राप्त वेग के कारण, उत्पत्ति स्थान पर पहुँच जाता है। चूँकि संसारी जीव चार गतियों में ही भ्रमण करता है इसलिए आनुपूर्वीनामकर्म के चार ही भेद होते हैं। 166 नाम कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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