SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम कर्म का स्वरूप नाम कर्म अंगोपांग - सरीरिदिय- मणुस्सास जोगणिप्पत्ती । जस्सोदएण सिद्धो तण्णामक्रवरण असरीरो ।। - प्राचीन गाथा, धवल टीका, पुस्तक 07, पृष्ठ 15 जिस नाम कर्म के उदय से अंगोपांग, शरीर, इन्द्रिय, मन, उच्छ्वास और योग की निष्पत्ति होती है उसी नाम कर्म के क्षय से सिद्ध अशरीरी होते हैं। प्रस्तुत गाथा में नाम कर्म के उदय से शरीर इन्द्रिय आदि का परिणाम उपलब्धि होना कहा है और नाम कर्म के क्षय से शरीर रहित होना कहा है। नाम कर्म से बाह्य सामग्री की प्राप्ति होना नहीं कहा है। नाम कर्म मन और शरीर से संबंधित नाना रूपों का सूचक है। इसीलिए नाम कर्म को चितेरे की एवं नाम कर्म के भेदों को नाना प्रकार के चित्रों की उपमा दी गई है। यथा नामकम्मं चित्तिसमं । - कर्मग्रन्थ भाग - 1, गाथा 22 अर्थात् जिस प्रकार आकृति की बनावट एवं रंगों की सजावट से चित्र नाना रूप धारण कर लेते हैं, इसी प्रकार शरीर की आकृति आदि की बनावट और जीव के मन के परिणामों से शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों से नाम कर्म अनेक रूपों में प्रकट होता है । नाम कर्म का सम्बन्ध शरीर से है अर्थात् शरीर, इन्द्रिय, मन, वचन, क्रिया आचरण व व्यवहार से है। शरीर में इन्द्रियों का होना, शरीर की संरचना, आकृति, सबलता - निर्बलता ( संहनन) शरीर के पुद्गलों के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, वचन का कांत, मधुर, प्रिय होना आदि सब नाम कर्म से सम्बद्ध हैं। नाम कर्म की 36 पुद्गल विपाकी प्रकृतियों का सम्बन्ध शरीर संरचना विज्ञान से है, यथा 5 शरीर (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर), 3 अंगोपांग (औदारिक, वैक्रिय, आहारक), 6 संहनन 152 नाम कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy