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________________ कर रहा है वह अपनी अज्ञानता से कर रहा है और बड़ा दुःखी हो रहा है। अज्ञानी और दुःखी व्यक्ति करुणा का ही पात्र होता है, घृणा का नहीं, जैसे बालक । ऐसा विचार कर वह अपने से घृणा करने वाले पर करुणा की ही वर्षा करता है और उसके हृदय को सरस, शान्त व सुखी बनाने का प्रयत्न करता है। अपने से निम्न श्रेणी के प्राणी पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, पेड़-पौधे आदि पर दया करना सहानुभूति के विकास का द्योतक है। मूक प्राणियों की रक्षा के लिये बड़ी गहरी सहानुभूति की आवश्यकता है। बल की शोभा निर्बलों की रक्षा करना है, निर्बलों को दुःख देना या नाश करना नहीं। जीवन सब का एकसा है। छोटे से छोटे प्राणी और महत् से महत् प्राणी में केवल बल और बुद्धि का अन्तर है, नहीं तो सब प्राणी समान ही हैं, एक हैं। अतः उनका दुःख दूर करना अपना ही दुःख दूर करना है। अपना दुःख दूर करने में अभिमान की क्या बात है? मनुष्य का कर्तव्य है कि उसे न केवल मनुष्य पर ही, बल्कि समस्त प्राणियों का बड़ा भाई होने के नाते प्राणिमात्र पर प्रेम या दया भाव रखना चाहिए। उसे अपने विशाल हृदय में प्राणिमात्र के प्रति सहानुभूति व सद्भावना रखनी चाहिए। जो प्राणिमात्र पर दया भाव रखता है वह मनुष्य के रूप में देवता है। जो मनुष्य, मनुष्य मात्र पर दया करता है, वह मनुष्य है। जो मनुष्य होकर भी मनुष्य पर दया नहीं रखता, उसमें मनुष्यता नहीं है, वह मनुष्य के रूप में पशु से भी गया बीता है और जो मनुष्य मनुष्य पर द्वेष भाव रखता है, दुःख देता है, वह राक्षस है। उसे नारकीय प्राणी ही समझना चाहिए। मानव जीवन का भावात्मक रूप मृदुता, दयालुता, विनम्रता, करुणाभाव है। जब हम दूसरों के दुःख में दुःखी होते हैं और उनके दुःख को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं तब चित्त से कामनाएँ-वासनाएँ तिरोहित हो जाती हैं, समभाव आ जाता है। दुःखी व्यक्ति के प्रति सहानुभूति जागृत होती है जिससे चित्त में निर्मलता आती है। मन भोगों से हटता है। भोगों से मन हटने से भोगेच्छा घटती जाती है, भोगेच्छा घटने से आरम्भ-परिग्रह घटता जाता है, संयम में वृद्धि होती जाती है। जिसकी पूर्णता होती है निष्काम वीतराग भाव में, जिसके फलस्वरूप जीवन कृतकृत्य हो जाता है। आयु कर्म 143
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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