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________________ अनुकूलता के जाने का और प्रतिकूलता के आने का भय सदा लगा ही रहता है और इस भय से हटने के उपाय ( उपचार - चिकित्सा) में तत्पर रहता है। तात्पर्य यह है कि जो सांसारिक सुख के भोगी हैं, दास हैं उन्हें भय और जुगुप्सा सताते ही रहते हैं। जिन्होंने सांसारिक सुख को दुःख का हेतु समझकर त्याग दिया है, उनके लिए अनुकूलता - प्रतिकूलता समान हो जाती है। अर्थात् वे अनुकूलता-प्रतिकूलता से ऊपर उठ जाते हैं फिर सुख - दुःख से वे प्रभावित नहीं होते हैं। आकाश में बादल आते जाते रहते हैं, उससे आकाश का कुछ नहीं बिगड़ता है तथा दर्पण में प्रतिबिंब पड़ते रहते हैं । दर्पण उससे प्रभावित नहीं होता है । दर्पण में सागर का प्रतिबिंब पड़ने से वह गीला नहीं होता है और पर्वत का प्रतिबिंब पड़ने से भारी नहीं होता है इसी प्रकार जो समता भाव में रहते हैं, सुख - दुःख उन्हें सुखी - दुःखी नहीं कर सकते। उनके लिए सुख-दुःख निष्प्राण - निर्जीव हो जाते हैं। वे भय और जुगुप्सा से मुक्ति पा लेते हैं। साथ ही वे रति और हास्य तथा अरति और शोक इन नो कषायों से भी मुक्ति पा लेते हैं 1 पुरुष वेद - स्त्रीवेद - नपुंसक वेद : वेद तीन हैं- 1. पुरुष वेद 2. स्त्री वेद 3. नपुंसक वेद । कर्तृत्व भाव पुरुषवेद है । भोक्तृत्व भावना स्त्रीवेद है। दोनों की मिली-जुली भावना नपुंसक वेद है । कर्तृत्व व भोक्तृत्व भाव से रहित होना निर्वेद है अथवा प्रयत्न या पुरुषार्थ करने की भावना पुरुष वेद है । दूसरों के आश्रय को चाहना स्त्रीवेद है। जिसमें ये दोनों हैं, वह नपुंसक वेद है। वेद का अर्थ वर्तमान में लैंगिक मैथुन सेवन या संभोग करना लगाया जा रहा है। यह उपयुक्त नहीं है। कारण कि संसार में जितने भी जीव हैं, उनके हर क्षण किसी न किसी वेद का उदय होता है । यहाँ तक कि क्षपक श्रेणी में भी वेद का उदय रहता है अर्थात् केवलज्ञान की उत्पत्ति के अन्तर्मुहूर्त पूर्व तक सभी जीवों के वेद का उदय नियम से हर क्षण रहता है । परन्तु मैथुन सेवन की इच्छा हर क्षण नहीं देखी जाती है। अतः वेद के अर्थ पर विचार करना आवश्यक है । वेद का अर्थ मैथुन लें तो मैथुन का अर्थ है दो पदार्थों का जुड़ना । जैसे मिथुन राशि है उसमें दो तारे जुड़े हुए हैं। अतः जहाँ दो का संयोग मोहनीय कर्म 129
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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