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________________ विपरीत विषय-भोगों के सुख को ग्राह्य व उपादेय मानना, इसमें जीवन-बुद्धि होना मिथ्यात्व है। मिश्र मोहनीय में विषय-कषाय जन्य सुख को आंशिक रूप में हेय और आंशिक रूप में उपादेय माना जाता है। चारित्र मोहनीय आत्मा के स्वभाव के विरुद्ध आचरण करना चारित्र मोहनीय है। यह ज्ञान के अनादर रूप आचरण का परिणाम है। जहाँ मोहयुक्त दृष्टि है अर्थात दर्शन मोहनीय है वहाँ चारित्र मोहनीय आवश्यक रूप से होता है। चारित्र मोहनीय की 16 कषाय एवं 9 नोकषाय, ये 25 कर्म प्रकृतियाँ हैं___16 कषाय- (1-4) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया एवं लोभ । (5-8) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया एवं लोभ (9-12) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया एवं लोभ (13-16) संज्वलन क्रोध, मान, माया एवं लोभ । 9 नोकषाय- (17) हास्य (18) रति (19) अरति (20) भय (21) शोक (22) जुगुप्सा (23) स्त्रीवेद (24) पुरुषवेद (25) नपुसंकवेद । कषाय का स्वरूप एवं उसके भेद-प्रभेद कर्मबंध एवं संसार–परिभ्रमण का प्रमुख कारण कषाय है। कष का अर्थ है 'संसार', अतः जिससे संसार में 'आय' अर्थात् आवागमन बना रहे वह कषाय है। कषाय का अर्थ कर्षण भी है। जिससे आकर्षण (राग) एवं विकर्षण (द्वेष) हो वह कषाय है तथा जो क्रोधादि के रूप में प्रकट होता है वह कषाय है। कषाय के 1. क्रोध 2. मान 3. माया 4. लोभ, ये चार मौलिक भेद हैं, भाव हैं, परिणाम हैं। इनमें से प्रत्येक के चार-चार उपभेद हैं- 1. अनन्तानुबंधी 2. अप्रत्याख्यान 3. प्रत्याख्यानावरण और 4. संज्वलन। इस प्रकार कुल 16 ही भेद स्वतंत्र हैं। चित्त का कुपित, क्षुब्ध या अशान्त होना क्रोध कषाय है। अपने से भिन्न पदार्थों से तादात्म्य स्थापित कर अपने को तद्रूप मानने का आचरण मान कषाय है। अनित्य वस्तु आदि के प्रति ममत्व का आचरण माया कषाय है। पर पदार्थों के संग्रह की लालसा लोभ कंषाय है। विषय भोग के सुख को ही जीवन मानकर निरन्तर भोग भोगते रहना तथा उन भोगों की पूर्ति के लिए प्रयास करते रहना उनका अंत न होने देने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना अनन्तानुबंधी है। मिथ्यात्वमोहनीय एवं अनन्तानुबंधी में घनिष्ठ सम्बन्ध है। विषय-भोगों में दुःख मानते हुए भी उनका त्याग न करना अप्रत्याख्यानावरण है। अप्रत्याख्यानावरण एक प्रकार से 118 'मोहनीय कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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