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मानव यह शिक्षा ग्रहण करे कि देह नश्वर है, मेरा नहीं है, देह का संग दुःखप्रद है । अतः हमारा हित देह के संग का त्याग करने में ही है, देहातीत होने में ही है। इस प्रकार का चिन्तन साधक के लिए कल्याणकारी है। इस तरह कारण में कार्य का उपचार करने से रोगोत्पत्ति आदि असातावेदनीय कल्याणकारी है, मंगलकारी है। दुःख से ही संसार से विरक्ति, विरति आती है, चेतना जागृत होती है। अतः दुःख में साधक का हित समाहित है, दुःख अहितकारी नहीं है ।
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वेदनीय कर्म