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________________ एक समय में एक ही उपयोग परिणाम या भाव एक समय में एक ही हो सकता है। अतः एक समय में एक ही उपयोग हो सकता है, दोनों उपयोग युगपत् नहीं हो सकते। परन्तु लब्धि ज्ञान-दर्शनगुण के साथ दान, लाभ, भोग आदि गुणों की भी होती है। यही नहीं किसी को अनेक ज्ञानों की उपलब्धि या लब्धि हो सकती है, परन्तु वह एक समय में एक ही ज्ञान का उपयोग करता है। जैसा कि कहा है- 'मतिज्ञानादिषु चतुर्यु पर्यायेणोपयोगो भवति न युगपत् (तत्त्वार्थभाष्य अ.1 सूत्र 31) अर्थात् मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान, इन चार ज्ञानों का उपयोग एक साथ नहीं होता। किसी भी जीव को एक साथ एक से अधिक ज्ञान का उपयोग नहीं हो सकता। कारण कि ये सब ज्ञान की पर्यायें है और यह नियम है कि एक साथ एक से अधिक पर्यायों का उपयोग नहीं हो सकता। इसीलिये पर्यायें क्रमवर्ती होती हैं, सहवर्ती नहीं। अतः चारों ज्ञानों की उपलब्धि तो एक साथ हो सकती है, परन्तु उनका उपयोग क्रमवर्ती होता है, सहवर्ती नहीं और एक ज्ञान में भी उसके अनेक भेदों में किसी एक भेद का ही ज्ञानोपयोग हो सकता है, अनेक भेदों का उपयोग एक साथ नहीं हो सकता। जैसा कि कहा हैदंगणणाणावरणक्रवाए समाणम्मि कस्य खेइ पुव्वयवरं। खेज्ज समो उप्पाओ ठुदि दुवे, णत्थि उवजोगा।।936।। -जयधवला पुस्तक, 1 पृ. 329 दर्शनावरण और ज्ञानावरण का क्षय एक साथ होने पर पहले केवलदर्शन होता है या केवलज्ञान? ऐसा पूछने पर कहना होगा कि दोनों गुणों की उत्पत्ति एक साथ होगी, पर इतना निश्चित है कि केवल ज्ञानोपयोग और केवल दर्शनोपयोग, ये दोनों उपयोग एक साथ नहीं हो सकते। अभिप्राय यह है कि जैनागमों में ज्ञान, दर्शन आदि गुणों के एक साथ होने का निषेध नहीं किया गया है। निषेध किया गया है दोनों उपयोग एक साथ होने का। यहाँ तक कि वीतराग केवली के भी दोनों उपयोग युगपत् नहीं माने हैं, जैसा कि कहा है- सव्वस्यकेवलिक्यविजुगवदोणत्थि उवओगा' -विशेषावश्यक भाष्य, 3096 दर्शनावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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