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________________ में ज्ञान, दर्शन आदि गुण हैं, उन पर मोह रूपी बादल से आवरण आ जाये, तो प्रकट नहीं होते। इसी प्रकार आत्मा में ज्ञान, दर्शन आदि गुण हैं, उन पर मोह रूपी बादल से आवरण आया हुआ है, अतः ज्ञान- - दर्शन गुण पूर्ण प्रकट नहीं हो रहे हैं। कुछ अंशों में गुण प्रकट हो रहा है और जितने अंश में गुण प्रकट हो रहा है उस आंशिक गुण का भी हम उपयोग नहीं कर रहे हैं । अर्थात् उसे काम में नहीं ले रहे हैं अथवा कभी काम में लेते हैं, कभी नहीं लेते हैं। जैसे किसी व्यक्ति को अंक गणित, बीज गणित, रेखा - गणित, भूगोल, हिन्दी, आदि विषयों का ज्ञान है, परन्तु वर्तमान में वह फिल्म देखने में तल्लीन है । अतः इन विषयों के ज्ञान का उपयोग नहीं कर रहा है। उपयोग न करने से उसका गणित आदि का ज्ञान नष्ट नहीं हो गया है और न उस पर आवरण ही आ गया है, न तो विस्मृति (आवरण) हुई है और न बिल्कुल भूल ही गया है। उपयोग नहीं करने पर भी ज्ञान गुण विद्यमान है, नष्ट नहीं हुआ है, विस्मृत नहीं हुआ है। यदि विस्मृत हो जाता, तो फिर याद नहीं आता। हमें हजारों शब्दों के अर्थ का ज्ञान है, परन्तु इस समय हम उन शब्दों का व अर्थ का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तो वे गुण नष्ट नहीं हो गये हैं, न उन पर आवरण ही आया हुआ है। मैं जान रहा हूँ, मैं ज्ञानी हूँ, मैं देख रहा हूँ, मैं द्रष्टा हूँ, ऐसा अनुभव होना, जानने-देखने की क्रिया या कार्य होना, उसका उपयोग है । जानने अथवा देखने की क्रिया का न होना, उनका उपयोग नहीं होना है। उपयोग नहीं होने से जानने और देखने के गुण का अभाव नहीं हो जाता । ज्ञान - दर्शन साकार - अनाकार, सविकल्प - निर्विकल्प होने से परस्पर विरोधी गुण हैं । अतः दोनों का उपयोग एक साथ होना संभव नहीं है । एक समय में एक ही गुण का उपयोग संभव है । परन्तु दोनों गुण आंशिक रूप में विद्यमान हैं । गुण और उसके उपयोग इन दोनों को एक समझना भूल है। जैसे देखने की शक्ति और उसकी देखने की क्रिया-प्रवृत्ति या उपयोग को एक समझना भूल है । जैसे कम या अधिक वस्तुएँ देखने से या कुछ भी नहीं देखने से देखने की शक्ति में कोई अन्तर नहीं आता है । इसी प्रकार ज्ञान गुण और ज्ञान की उपयोगिता में अन्तर है, इन दोनों को एक समझना भूल है। किसी गुण के उपयोग का कम- ज्यादा होने या बिल्कुल न होने से I ज्ञानावरण कर्म 55
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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