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________________ चखा, जिससे यह ज्ञान हुआ कि स्वादिष्ट वस्तुओं से सुख मिलता है। अब वह स्वाद का अधिकाधिक सुख पाने के लिये सैकड़ों प्रकार की मिठाइयाँ, नमकीन, पेय- पदार्थ की व उन्हें बनाने की जानकारी करता है, इससे उसका स्वादिष्ट वस्तुओं का उपयोग कैसे किया जाय, यह जानकारी तो बहुत बढ़ गई, जानकारी का संग्रह हो गया और भोगेच्छा प्रबल हो गई, मोह में वृद्धि हुई। परन्तु, इससे उनका ज्ञान-गुण बढ़ गया हो, सो नहीं है। अब भी ज्ञान तो वही है कि स्वादिष्ट वस्तुओं से सुख मिलता है। उसका यह अज्ञान दृढ़ हुआ। यह ज्ञानावरणीय-कर्म के क्षयोपशम से नहीं हुआ, प्रत्युत ज्ञानावरणीय-कर्म के उदय से हुआ। किसी छात्र ने गणित की एक रीति सीखी और उस रीति के सैकड़ों प्रश्न किये। उससे उसका उस रीति का ज्ञान बढ़ नहीं जाता है, वह रीति दृढ़ होती है। तात्पर्य यह है कि ज्ञान-गुण व वस्तु की जानकारी, ये दोनों एक बात नहीं हैं। ज्ञान के उपयोग से जानकारी बढ़ती है, ज्ञान-गुण नहीं बढ़ता है। अर्थात् ज्ञानावरणीय-कर्म का क्षयोपशम नहीं बढ़ता है, ज्ञानावरणीय-कर्म में कमी नहीं होती है। तात्पर्य यह है कि ज्ञान-गुण और ज्ञानोपयोग एक नहीं हैं। जीव के मुख्य दो गुण हैं, दर्शन और ज्ञान। यह नियम है कि जब दर्शन-गुण का उपयोग होता है, तब ज्ञान--गुण का उपयोग नहीं होता है। कारण कि दर्शन निर्विकल्प होता है और ज्ञान सविकल्प होता है और किसी भी समय सविकल्प और निर्विकल्प दोनों एक साथ नहीं हो सकते हैं। इसी प्रकार जब ज्ञान गुण का उपयोग होता है तब दर्शन गुण का उपयोग नहीं हो सकता। ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग में से किसी भी प्राणी के एक समय में एक ही उपयोग होता है। कभी भी दोनों उपयोग एक साथ नहीं हो सकते। परन्तु जिस समय दर्शनोपयोग होता है, उसी समय उस प्राणी में ज्ञान-गुण नहीं रहता हो अथवा जिस समय ज्ञानोपयोग होता है, उस समय उस प्राणी में दर्शन-गुण नहीं रहता हो, सो बात नहीं है। यदि इनमें से एक भी गुण नष्ट हो जाय तो जीव का जीवत्व ही नष्ट हो जाय। अतः ज्ञान और दर्शन, ये दोनों गुण प्रत्येक प्राणी में सदा-सर्वत्र ज्यों के त्यों विद्यमान रहते हैं। इसलिए ज्ञान व दर्शन गुण का उपयोग होने या न होने से या उपयोग कम होने या अधिक होने से ज्ञान-दर्शन गुण में हानि-वृद्धि नहीं होती है। जैसे- किसी व्यक्ति को गणित, भूगोल, ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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