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________________ इन चित्रों का निर्माण आत्म-प्रदेशों के समीपवर्ती अति सूक्ष्म पुद्गल कार्मण-वर्गणाओं से होता है। कार्मण-वर्गणाओं से निर्मित इन चित्रों को कर्म कहा जाता है। आत्मा द्वारा ग्रहण किये उन कर्मों के समुदाय को कार्मण शरीर कहते हैं। यह कार्मण शरीर प्राणी के अंतःस्थल में सदैव विद्यमान रहता है। प्राणी की शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, बल, प्राण आदि का निर्माण इसी के अनुसार होता है। यह कार्मण शरीर ही प्राणी का भाग्य विधाता है। इसी में प्राणी के सभी भले-बुरे कामों का, कर्मों का लेखा-जोखा रहता है और उसी के अनुसार भला-बुरा, शुभ-अशुभ फल मिलता है। शुभ फल को सौभाग्य तथा अशुभ (बुरे) फल को दुर्भाग्य कहा जाता है। प्रश्न उपस्थित होता है कि आत्मा के साथ कर्म क्यों जुड़ते हैं, तो कहना होगा कि जब आत्मा का किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थिति के साथ लगाव होता है, तो कर्म का बंध हो जाता है अर्थात् आत्मा से कर्म जुड़ जाते हैं। वस्तु, व्यक्ति, स्थिति के साथ जब तक लगाव नहीं होता है, तब तक आत्मा उससे असंग रहता है, आत्मा उनसे नहीं जुड़ता है। उदाहरणार्थ हम बाजार से होकर निकलते हैं। मार्ग में परिचित-अपरिचित अनेक व्यक्ति मिलते हैं, हम उनके पास होकर निकल जाते हैं, परन्तु हमारे मन पर उनका कोई प्रभाव अंकित नहीं होता है। हमें कोई पूछे कि आपको अमुक वेशभूषा, नाम वाला व्यक्ति मिला क्या? तो हम कह देते हैं कि हमें कोई ध्यान या कोई जानकारी नहीं है। परन्तु जिस व्यक्ति से हमारा कुछ भी सम्बन्ध है, लगाव है, उसकी आकृति या प्रतिबिम्ब हमारे हृदय पर अंकित हो जाता है, किसी के पूछते ही वह अंकित प्रभाव स्मृति के रूप में प्रकट हो जाता है। इसी प्रकार मार्ग में हलवाई की दुकान पर बीसों मिठाइयाँ दिखती हैं, परन्तु जब तक हम उनमें से किसी मिठाई को देखकर उसके स्वाद या अन्य किसी विषय का चिंतन नहीं करते हैं, तब तक हमारे अन्तःकरण पर उसका प्रभाव अंकित नहीं होता है। इसी प्रकार कपड़े की दुकान पर विविध कपड़े दिखते हैं। सर्राफ की दुकान पर अनेक आभूषण दिखते हैं, परन्तु उनका प्रभाव हमारे अंतःकरण पर अंकित नहीं होता है कारण कि उनके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं जुड़ता है। हम केवल उसके दर्शक रहे, भोक्ता नहीं बने। कर्मबंध होते हैं- विषयों के भोग से, उसे पसंद-नापसंद करने से, चाहने– न चाहने से । शास्त्रीय भाषा में चाहने को प्राक्कथन XII
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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