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________________ वाला ही अंतर्दृष्टि है, वही ज्ञानी है। जो दुःख का कारण अपने को मानता है, वही दुःख के कारण का निवारण का दुःख से मुक्ति पा सकता है। जिस ज्ञान से दुःख से सदा के लिए आत्यन्तिक मुक्ति मिले, वही सम्यक ज्ञान है। ज्ञानावरण और अज्ञान में भेद __ जैनागमों में प्राणी को जहाँ अज्ञानी कहा है, वहाँ कहीं पर भी इसका अभिप्राय ज्ञान का नाश होना नहीं है, अपितु ज्ञान का विपर्यास होना है। विपर्यास का अर्थ है- विपरीत धारणा अर्थात् जो जैसा है, वैसा नहीं मानना और जो जैसा नहीं है, उसे वैसा मानना। इसे मिथ्याज्ञान या मिथ्यात्व भी कहा है। मिथ्यात्व युक्त ज्ञान को ही अज्ञान कहा गया है और मिथ्याज्ञान वाले को मिथ्यात्वी कहा गया है। जो मिथ्यात्वी नहीं है, उसे सम्यक्त्वी कहा गया है। सम्यक्त्वी का सारा ज्ञान सम्यकज्ञान होता है। कहीं पर किसी भी अंश में उसे अज्ञानी नहीं कहा गया है, फिर भले ही उसे खगोल, भूगोल, इतिहास, गणित, विज्ञान आदि का किंचित भी ज्ञान नहीं हो। सम्यक्त्वी के ज्ञान पर भी आवरण होता है। अतः ज्ञान पर आवरण आना मिथ्याज्ञान नहीं है। ज्ञान पर आवरण आना अलग बात है और ज्ञान का विपर्यास होना अलग बात है। दोनों बातें भिन्न-भिन्न हैं। ज्ञान पर आंशिक आवरण तो केवलज्ञान होने के पूर्व क्षण तक अर्थात् बारहवें गुणस्थान तक सभी जीवों के रहता है। जबकि मिथ्याज्ञान या मिथ्यात्व पहले व दूसरे गुणस्थान में ही रहता है। मिथ्यात्व युक्त ज्ञान मिथ्याज्ञान है। ज्ञान का आदर न करना ज्ञान पर आवरण आना है। विषय-भोग का सुख, जो आकुलता युक्त होने से दुःख रूप ही है, उसमें सुख का दर्शन (अनुभव) करना वास्तविक सुख मानना मिथ्यादर्शन है, मिथ्यात्व है। इसी प्रकार अपना सुख भूमि, धन, धान्य, संपत्ति की प्राप्ति में मानना पराश्रित या पराधीन होना है। कारण कि इनका वियोग अवश्यम्भावी है, ये सदा साथ रहने वाले नहीं हैं, न ये साथ आए हैं, न साथ जायेंगे। न इन पर प्राणी का स्वतन्त्र अधिकार है, क्योंकि वह इन्हें जब चाहे, जितना चाहे, जैसा चाहे, वैसा निर्माण करने, उपार्जन करने व सुरक्षित रखने में समर्थ नहीं है। यह उसके अधीन नहीं है। अतः इन पर निर्भर होना पराधीनता है। अर्थात् अपने से भिन्न वस्तुएँ पर हैं, उन 'पर' वस्तुओं पर सुख की निर्भरता पराधीनता है। इस पराधीनता को अर्थात् भूमि, भवन, धन आदि की प्राप्ति 48 ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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