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________________ आकर्षण (राग) से ही कामना, ममता, अहंता उत्पन्न होती है। कामना से अशान्ति, ममता से पराधीनता और अहंता से जड़ता उत्पन्न होती है। कामना (आरम्भ) के त्याग से शान्ति व प्रसन्नता, ममता (मूर्छा-परिग्रह) के त्याग से मुक्ति व स्वाधीनता एवं अहंता के त्याग से चिन्मयता व अनन्त-सुख की अभिव्यक्ति होती है। जिसे शान्ति चाहिए, उसे कामना, चाह, इच्छा का त्याग करना ही होगा। जिसे स्वाधीनता या मुक्ति चाहिए उसे ममता-परिग्रह का त्याग करना ही पड़ेगा। जिसे अनन्त, अविनाशी, अक्षुण्ण, अव्याबाध सुख चाहिए, उसे विनाशी शरीर आदि से तादात्म्य एवं तद्पता-रूप अहंता का त्याग करना ही होगा। यह नियम सब प्राणियों पर भूत, वर्तमान, भविष्य, इन सब कालों में समान रूप से लागू होता है। संसार की समस्त वस्तुएँ नश्वर हैं, अतः इनकी प्राप्ति-अप्राप्ति का कोई अर्थ ही नहीं है, सब निरर्थक हैं। स्वरूपतः संसार के सब पौद्गलिक पदार्थों में एकरूपता है। ये सब एक ही जाति के हैं। अतः इनमें से किसी एक का ज्ञान, सभी का ज्ञान है। ज्ञान मूलतः एक ही है और सनातन है। जो ज्ञान में अन्तर दिखाई देता है, वह उस ज्ञान में प्रकाशित होने वाली स्थितियों, अवस्थाओं, पर्याओं में है। मूल ज्ञान अभेद ज्ञान है, निर्विकल्प (तर्करहित) ज्ञान है, अनन्त (अन्तरहित-सनातन) ज्ञान है, अशेष (कुछ भी जानना शेष न रहने योग्य) ज्ञान है। अभेद ज्ञान, अनन्त ज्ञान एवं अशेष ज्ञान का होना ही सर्वज्ञता है। __ आशय यह है कि सम्पूर्ण संसार में एक ही नियम काम कर रहा है। उस नियम को चाहे कर्म-सिद्धान्त कहें, चाहे प्राकृतिक विधान कहें, चाहे नैसर्गिक नियम कहें, चाहे स्वभाव कहें, चाहे धर्म कहें अथवा किसी अन्य नाम से पुकारें; ये सब एक ही नियम के विविध रूप हैं। अतः जो एक नियम (तथ्य) को जान लेता है, वह सब को जान लेता है, फिर उसे कुछ भी जानना, पाना, करना शेष नहीं रहता। उसे संसार में कुछ पाने, करने, जानने की इच्छा नहीं रहती है। यह ही घाति कर्मों का क्षय है। ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय के क्षय से जानना व अनुभव करना शेष नहीं रहता है, मोहनीय कर्म के क्षय से प्रयास रूप प्रवृत्ति करना शेष नहीं 34 ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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