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________________ प्रथमो विलासः । ४३/ विरक्ता तु प्रहसनप्रभृतिष्वेव वर्ण्यते । तस्या धौर्त्यप्रभृतयो गुणास्तदुपयोगिनः ।।११४।। विरक्ता सामान्या नायिका प्रहसन इत्यादि में वर्णित होती है। उसके धूर्तता आदि गुण उसके लिए उपयोगी होते हैं।।११४॥ छन्नकामान् रतार्थाज्ञान् बालपाषण्डषण्डकान् । रक्तव रञ्जयेदिभ्यानिःस्वान् मात्रा विवासयेत् ।।११५।। छन्त्रकामाः श्रोत्रियादयः। रतार्था रतिसुखप्रयोजनाः। अज्ञाः मूढाः। शेषाः प्रसिद्धाः। वह (विरक्ता सामान्या नायिका) धनसम्पन्न, छत्रकामियों, रतिप्रयोजन वालों, अज्ञों (मूों) अनजान पाखण्डियों और हिजड़ों को रक्ता की भाँति सन्तुष्ट करती है तथा धन से रहित जन को (अपनी) माता के द्वारा बाहर निकलवा देती है।।११५॥ श्रोत्रिय इत्यादि छनकामी, रतिसुखप्रयोजन वाले रतार्थ तथा मूढ़ लोग अज्ञ कहलाते हैं। शेष प्रसिद्ध हैं। अत्र केचिदाहुः गणिकाया नानुरागो गुणवत्यपि नायके । रसाभासप्रसङ्गः स्यादरक्तायाः वर्णने । अतश्च नाटकादौ तु वा सा न भवेदिति । इस विषय में कुछ लोग कहते हैं "गुणवान् नायक में भी वेश्या का अनुराग नहीं होता। विरक्ता (अरक्ता) का नाटक में स्थान न होने पर भी प्रसङ्गवशात् उसकी उपस्थिति से रसाभासमात्र हो जाता है। अत: नाटक इत्यादि में वह (विरक्ता सामान्या नायिका) वर्णित नहीं होती।।११६पू.।। तथा चाहुः (शृङ्गारतिलके १.१२०,१२२) सामान्यवनिता वेश्या सा द्रव्यं परमिच्छति । गुणहीने न च द्वेषो नानुरागो गुणिन्यपि ॥ शृङ्गाराभास एतत्स्यात् न शृङ्गार: कदाचन ।।इति।। तन्मतं नानुमनुते श्रीशिङ्गभूपतिः।।११६।। और भी (शृङ्गार-तिलक) में कहा गया है सामान्या स्त्री (सामान्या वनिता) वेश्या होती है। वह दूसरे के धन को चाहती है। गुणविहीन नायक के प्रति न उसका द्वेष होता है और न गुणवान् के प्रति अनुराग। इसके द्वारा शृङ्गाराभास ही होता है, शृङ्गार (रस की निष्पत्ति) नहीं। किन्तु शिङ्गभूपाल इस मत को नहीं मानते ॥११६उ.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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