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________________ प्रथमो विलासः [ ३७] किया। रुचिकर वचन सुनने की उत्सुकता से उस रात में बातचीत आरम्भ किया, यह उचित ही था। इस प्रकार अब दिन हो जाने पर जड़ता और कलाहीनता से युक्त कोई (नायिका) उत्पन्न आँसुओं के कारण अस्पष्ट और प्रिय शब्द को कह रही है।।49।। अथ प्रगल्भा सम्पर्णयौवनोन्मत्ता प्रगल्भा रूढमन्मथा । दयिताने विलीनेव यतते रतिकेलिषु ।।१०२।। रतप्रारम्भमात्रेऽपि गच्छत्यानन्दमूर्च्छनाम् । (इ) प्रगल्भा (प्रौढ़ा)- प्रगल्भा नायिका सम्पूर्ण यौवन (चढ़ी जवानी) के कारण उन्मत्त, (सम्पूर्ण यौवनोन्मत्ता), प्ररूढ काम वाली (रूढमन्मथा), रति- क्रीडा में प्रियतम के अङ्गों में प्रविष्ट-सी होती हुई तथा सुरत के प्रारम्भ मात्र में ही आनन्द की मूर्छा को प्राप्त हो जाती है।।१०२-१०३पू.।। सम्पूर्णयौवनत्वं यथा ममैव उत्तुङ्गौ कुचकुम्भौ रम्भास्तम्भोपमानमूरुयुगलम् । तरले दृशौ च तस्याः सृजता धात्रा किमाहितं सुकृतम् ।।50।। सम्पूर्णयौवनत्व जैसे शिङ्गभूपाल का उस (नायिका के ) घड़े के समान दोनों स्तन ऊपर को उठे हुए है, दोनों जवाएँ कदली के खम्भे के समान हैं और दोनों आँखें चञ्चल हैं इस प्रकार (उसको) बनाते हुए विधाता के द्वारा (उसमें) कौन-सा अनुग्रह (पुण्य) स्थापित किया है।।50।। रूढमन्मथत्वं यथा ममैव निःश्वासोल्लसदुन्नतस्तनतटं निर्दष्टबिम्बाधरं निर्मिष्टाङ्गविलेपनैश्च करणैश्चित्रे प्रवृत्ते रते । काञ्चीदामविभिन्नमङ्गदयुगं भग्नं तथापि प्रियं सम्प्रोत्साहयति स्म सा विदधती हस्तं क्वणत्कङ्कणम् ।।51 ।। रूढमन्मथत्व जैसे शिङ्गभूपाल का ही अङ्गों के विलेपन को मिटा देने वाली क्रियाओं के साथ (प्रियतम के) रुचिकर (दिलचस्प) सुरत-क्रिया में प्रवृत्त होने पर (नायिका के ) निःश्वास (लम्बी लम्बी श्वाँस) के कारण उन्नत स्तनों का चुचुक रोमाञ्चित हो गया, बिम्ब के समान लाल ओष्ठ (नायक द्वारा) काट लिया गया, करधनी की डोरी टूट गयी, दोनों बाजूबन्द खण्डित हो गये, तो भी बजते हुए कङ्गनों वाले हाथ वाली उस नायिका ने प्रियतम को पूरी तरह से प्रोत्साहित किया।।51 ।। मानवृत्तेः प्रगल्भापि त्रिधा धीरादिभेदतः ।।१०३।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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