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________________ | ३४ ] रसार्णवसुधाकरः क्रोधादभाषणा रुदती यथा ममैवकान्ते कृतागसि पुरः परिवर्तमाने सख्यं सरोजशशिनोः सहसा बभूव । रोषाक्षरं सुदृशि वक्तुमपारयन्त्यामिन्दिवरद्वयमवाप तुषारधाराम् ।।43।। क्रोध के कारण न बोल पाती हुई (अतः ) रोती हुई जैसे शिङ्गभूपाल का ही (दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करके) अपराध किये हुए (प्रियतम) के पास में आने पर प्रियतमा (का गोरा मुख) उसी प्रकार लाल हो गया जैसे कमलिनी और चन्द्रमा का साथ होने पर सफेद कमलिनी लाल वर्ण की हो जाती है । उस सुन्दर नेत्रों वाली को अपनी क्रोधपूर्ण बात न कह पाने के कारण दोनों कमल ( के समान आँखें) आसुओं की धारा से भर गयीं । । 43 ।। अथ मध्या समानलज्जामदना प्रोद्यत्तारुण्यशालिनी । मध्या कामयते कान्तं मोहन्तसुरतक्षमा ।। ९८।। (आ) मध्या स्वकीया नायिका- जो लज्जा और समागम में समान रहने वाली (समानलज्जामदना), परिपुष्ट यौवन वाली ( प्रोद्यत्तारुण्यशालिनी) तथा मोह की अवस्था पर्यन्त सुरत में सक्षम (मोहान्तसुरतक्षमा) तथा अन्त तक प्रियतम को चाहने वाली होती हैं, वह मध्या नायिका कहलाती है ।। ९९ ॥ तुल्यलज्जास्मरत्वं यथा ममैव कान्ते पश्यति सानुरागमबला साचीकरोत्याननं तस्मिन्कामकलाकलापकुशले व्यावृत्तत्रे किल । पश्यन्ती मुहुरन्तरङ्गमदनं दोलायमानेक्षणा लज्जामन्मथमध्यागापि नितरां तस्याभवत् प्रीतये ।।44 ।। तुल्यलज्जास्मरत्व जैसे शिङ्गभूपाल का ही मुख खोले हुए उस कामकला में निपुण प्रियतम के देखने पर (नायिका) मुख को नीचे कर लेती है। फिर लज्जा और कामवासना के मध्य फँसी हुई, अपने भीतर के काम (वासना) को देखती (अनुभव करती हुई चञ्चल नेत्रों वाली ( नायिका उस समय ) उस (प्रियतम) की अत्यधिक प्रसन्नता के लिए (कारण) हो गयी । 144 ।। प्रोद्यत्तारुण्यशालित्वं यथा ममैवनेत्राञ्चलेन ललिता वलिता च दृष्टिः सख्यं करोति जघनं पुलिनेन साकम् ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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