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________________ | २८ रसार्णवसुधाकरः शठोपपतिर्यथा मज्झण्णे जणसुण्णे करिणीए भक्खिदेसु कमलेसु । अविसेसण्ण कहं विअ गदोऽसि सणवाडिअं दठ्ठम् ।।36।। (मध्याह्ने जनशून्ये करिण्या भक्षितेषु कमलेषु । अविशेषज्ञ! कथमिव गतोऽसि शणवाटिकां द्रष्टुम्।।) अत्र कयाचित्स्वैरिण्या मयि सङ्केतं गतायां त्वं तु शणवाटिकायां कयापि रन्तुं गतोऽसि व्यङ्ग्यार्थेनान्यासम्भोगसूचनादयं शठोपपतिः। शठ उपपति जैसे हे अविशेषज्ञ! मध्याह्न (दोपहर) में एकान्त में हथिनी के द्वारा कमलों के खाने पर शणवाटिका को देखने के लिए क्यों गये थे।।36।। ___ यहाँ किसी स्वैरिणी रमणी द्वारा मेरे सङ्केत वाले स्थल में जाने पर तुम तो शणवाटिका में किसी (अन्य रमणी) के साथ रमण करने के लिए गये थे। इस व्यङ्ग्य अर्थ से दूसरी स्त्री के साथ समागम के सूचित होने के कारण यह शठ उपपति है। अथ वैशिक: रूपवान् शीलसम्पन्नः शास्त्रज्ञः प्रियदर्शनः ।।८५।। कुलीनो मतिमान् शूरो रम्यवेषयुतो युवा । अदीनः सुरभिस्त्यागी सहनः प्रियभाषिणः ।।८६।। शङ्काविहीनो मानी च देशकालविभागवित् । दाक्ष्यचातुर्यमाधुर्यसौभाग्यादिरभिरन्वितः ॥८७।। वेश्योपभोगरसिको यो भवेत् सः तु वैशिकः । कलकण्ठादिको लक्ष्ये भाणादावेव वैशिकः ।।८८।। ३. वैशिक- जो नायक रूपवान् शीलसम्पत्र, शास्त्र का ज्ञाता, देखने में प्रिय लगने वाला, कुलीन, बुद्धिमान् वीर, रमणीय वेषवाला, युवक,धनवान्,रुचिकर,त्यागी,सहनशील, प्रियवक्ता, शङ्कारहित, अभिमानी, देश तथा काल का ज्ञाता, दक्षता-चतुरता-माधुर्य-सौभाग्य इत्यादि से सम्पन्न तथा वेश्याओं के साथ सम्भोग में रस लेने वाला होता है, वह वैशिक होता है। भाण इत्यादि रूपकों में कलकण्ठ इत्यादि नायक वैशिक हैं।।८५उ.-८८।। स त्रिधा कथ्यते ज्येष्ठमध्यनीचविभेदतः। तेषां लक्षणानि भावप्रकाशिकायामुक्तानियथा भावप्रकाशे (५/३७-४४)' असङ्गोऽपि स्वभावेन सक्तवच्चेष्टते मुहुः ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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