SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमो विलासः [२५] ननु सोऽहमेव यमनन्दयत्पुरा । अयमागृहीतकमनीयकङ्कण स्तव मूर्तिमानिव महोत्सवः करः ।।30।। धीरशान्तानुकूल नायक जैसे (मालतीमाधव ९.९ में) (माधव मालती से कहता है) हे माधव से प्रेम करने वाली मालती! मुझ (माधव) के ऊपर क्यों प्रणयशून्य हो गयी हो। अरी! मैं वही हूँ, पहले सुन्दर कङ्कन को धारण करने वाला मूर्तिमान् महोत्सव के समान तुम्हारे हाथ ने जिस माधव को आनन्दित किया था।।30।। धीरोद्धतानुकूलो यथा (वेणीसंहारे २.९) किं कण्ठे शिथिलीकृता भुजलता स्वापप्रमादान्मया निद्राच्छेदविवर्तनेष्वभिमुखं नाद्यासि सम्भाविता । अन्यस्त्रीजनसङ्कथालघुरहं स्वप्नेऽपि नो लक्षितो दोषं पश्यसि कं प्रिये! परिचयोपालम्भयोग्ये मयि ।।31 ।। धीरोद्धतानुकूल (नायक) जैसे (वेणीसहार २.९ में) असावधानी के कारण मेरे द्वारा गले में बाहुरूपी लताओं का पाश (बन्धन) शिथिल किया गया है क्या? (अर्थात् तुम्हारे द्वारा बाहुओं को डालकर मेरे गले में लटकने पर मैंने दूसरी ओर ध्यान होने के कारण उन्हें ढीली कर दिया है क्या)? आज नींद उचटने पर करवटें बदलने में (मेरे द्वारा) नहीं सम्मानित की गयी हो (क्या)? (अर्थात् क्या सोते समय भी मैनें तुम्हारा तिरस्कार किया है क्या)? स्वप्न में तुम्हारे द्वारा मैं दूसरी स्त्री के साथ बात-चीत में तल्लीन होने के कारण लघु (ओछा-तिरस्करणीय) समझ लिया गया (क्या)? हे प्रिये, सेवक की (तरह) भर्त्सना (डॉट) के पात्र मुझमें किस दोष को देख रही हो (जिसके कारण मुझ पर नाराज होकर यहाँ चली आयी हो)?||31।। अथ शठः शठो गूढापराधकृत् । यथा (रघुवंशे १९/२२) स्वप्नकीर्तितविपक्षमङ्गनाः प्रत्यभैत्सुरवदन्त्य एव तम् । प्रच्छदान्तगलिताश्रुबिन्दुभिः क्रोधभित्रबलयैर्विवर्तनैः ।।32।। (आ) शठ (नायक)- (पूर्वनायिका के प्रति) गुप्त रूप से (अन्य नायिका से मिलकर) अपराध करने वाला शठ नायक होता है।।८२पू.॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy