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________________ प्रथमो विलासः [७॥ तल्लब्धानि घनाघनैरतितरां वारां पृषन्त्यम्बुधौ स्वात्यामेव हि शक्तिकासु दधते मुक्तानि मुक्तात्मताम् । यद्दानोदकवितषस्तु सुधियां हस्ते पतन्त्योऽभवन् माणिक्यानि महाम्बराणि बहुशो धामानि हेमानि च ।।३१।। घने बादलों द्वारा प्राप्त अतिशय जल समुद्र में गिरता है किन्तु स्वाती नक्षत्र में ही (समुद्र की) सीपियों में (पड़ा जल) मोतियों के रूप में मोती के गुण को प्राप्त करता है जब कि इनके दान रूपी जल की बूंदें सुधी लोगों के हाथ में गिरते ही अनेक प्रकार के माणिक्य, वस्त्र, घर और सुवर्ण हो जाती थी॥३१॥ नयमनयं गुणमगुणं पदमपदं निजमवेक्ष्य रिपुमपाः । यस्य च नयगुणविदुषो विनमन्ति पदारविन्दपीठाम् ।।३२।। अपनी नीति-अनीति, गुण-दोष, न्याय-अन्याय को देख कर शत्रु राजा नीति और गुण के ज्ञाता (शिङ्गभूपाल) के पद कमल की पीठ (पैर रखने के आसन) पर झुक जाते (शिर झुकाते) थे।॥३२॥ प्राणानां परिरक्षणाय बहुशो वृत्तिं मदीयां गतास्त्वत्सामन्तमहीभुजः करुणया ते रक्षणीया इति । कणे वर्णयितुं नितान्तसुहदोः कर्णान्तविश्रान्तयो मन्ये यस्य दृगन्तयोः परिसरं सा कामधेनुः श्रिता ।।३३।। प्राणों की रक्षा के लिए मैंने बहुत सा उपाय किया किन्तु आप सामन्त राजा की करुणा से उन (प्राणों) की रक्षा हुई-इस प्रकार मानो जिसके कानों में कहने के लिए परम मित्र तथा कानों तक फैले हुए आँखों के किनारों से आँसू बहाने वाली कामधेनु ने जिनका आश्रय ले लिया था।॥३३॥ युष्माभिः प्रतिगण्डभैरवरणे प्राणाः कथं रक्षिता इत्यन्तःपुरपृच्छया यदरयो लज्जावशं प्रपिताः । शंसन्त्युत्तरमाननव्यतिकरव्यापारपारङ्गता गण्डादोलितकर्णकुण्डलहरिन्माणिक्यवर्णाङ्गराः ।।३४।। 'विपक्षी योद्धाओं के घमासान युद्ध में आप लोगों द्वारा किस प्रकार प्राणों की रक्षा की गयी'- इस प्रकार रनिवास की रानियों द्वारा पूछे जाने के कारण शत्रुओं के लज्जा के वशीभूत हो जाने पर मुख से मिश्रित हाथों के व्यापार को जानने वाली तथा गालों पर आन्दोलित (हिलते हुए) कानों के कुण्डलों के हरे माणिक्यों से रोमाञ्चित हुई पत्नियाँ उत्तर की आशंसा करती थीं।॥३४॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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