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________________ प्रथमो विलासः शत्रुओं का दमन करने में कृष्ण के समान जिनके पृथ्वी पर उबुद्ध शासन करते समय लोगों का नित्य कल्याण होता था।।२०।। हेमाद्रिदानधरणीसुराणां “महाचलं हस्तगतं विहाय । यश्चारुसोपानपथेन चक्रे श्रीपर्वतं सर्वजनप्रगम्यम् ।।२१।। हस्तगत महाचल पर्वत को छोड़कर सुवर्ण पर्वत को ब्राह्मणों के दान में देने के कारण सुन्दर सीढ़ी के मार्ग द्वारा भी पर्वत को सभी लोगों के लिए सुगम बना दिया।।२१।। यो नैकवीरोद्दलनोऽप्यसङ्ख्यसङ्ख्योऽप्यभग्नात्मगतिक्रमोऽपि । अजातिसार्यभवोऽपि चित्रं दधाति सोमान्वयभार्गवाङ्कम् ।।२२।। जो अनेक राजाओं का दलन (दमन) करने वाले, असंख्य युद्धों को करने वाले और अपराजित आत्मगति वाले थे किन्तु वे जाति सङ्करता (वर्णसङ्करता) से नहीं उत्पन्न हुए सोमवंशीय परशुराम के चिह्न को धारण करते थे- यह विचित्र बात थी।।२२।। तात्पर्य यह है कि उपर्युक्त गुणों वाले परशुराम वर्णसङ्कर थे किन्तु वे अनन्त वर्णसङ्कर नहीं थे। घावं धावं रिपुनृपयो युद्धरङ्गापविद्धाःखड्गे खड्गे फलितवपुषं यं पुरस्ताद् विलोक्य' । प्रत्यावृत्ता अपि तत इतो वीक्षमाणा यदीयं सम्मन्यन्ते स्फुटमवितथं खङ्गनारायणकम् ।।२३।। युद्ध क्षेत्र से विमुख हुए अत एव इधर-उधर दौड़ते हुए शत्रु राजा गण प्रत्येक तलवार में जिस यथार्थ (या फलदायी) शरीर वाले (अनन्त) को सामने देखकर वहाँ लौटते हुए भी जिसके खड्गनारायण के चिह्न (उपाधि) को स्पष्ट रूप में यथार्थ (सत्य) मानते थे अर्थात् प्रत्येक तलवार में उनकी छाया दिखाई देने से खगनारायण नाम यथार्थ प्रतीत होता था। ॥२३॥ अन्नमाम्बेति विख्याता तस्यासीद्धरणीपतेः । देवी शिवा शिवस्येव राजमौलेर्महोज्ज्वला ।।२४।। शत्रुघ्नं श्रुतकीर्तिर्या सुभद्रा यशसार्जुनम् । आनन्दयति भर्तारं श्यामा राजनमुज्ज्वलम् ।। २५।। शंकर की देवी पार्वती के समान, शत्रुघ्न की श्रुतिकिर्ति के समान, अर्जुन की
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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