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________________ रसार्णवसुधाकरः सहोदरता (भ्रातृत्व) को प्राप्त किया है (तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार विष्णु के चरण-कमल से उत्पन्न गङ्गा जी निष्कलुष हैं उसी प्रकार उनका सहोदर होने के कारण शूद्रवर्ण भी निष्कलुष है)॥४॥ [ २ ] तत्र रेचल्लवंशाब्धिशरद्राकासुधाकरः । कलानिधिरुदार श्रीरासीद्दाचयनायकः ।।५।। शिङ्गभूपाल का परिचय उस (शूद्र वर्ण) में रेचल्लवंश रूपी समुद्र में वृद्धि करने वाले शरत्-कालीन रात्रि के चन्द्रमा के समान कला-निधि और उदार कीर्ति वाले दाचयनायक थे ॥ ५ ॥ यस्यासिधारामार्गेण दुर्गेण रथाङ्गणे । पाण्ड्यराजगजानीकाज्जयलक्ष्मीरुपागता ।। ६ ।। जिस (दाचय नायक) के युद्धाङ्गण में तलवार की धार रूपी दुर्ग-मार्ग से होती हुई जय रूपी लक्ष्मी पाण्ड्यराजा के हाथी वाले सैनिकों के पास से उनके पास चली आयीं ॥ ६ ॥ खड्गनारायणे यस्मिन् भवति श्रीरतिस्थिरा । भूरभूत् करिणी वश्या दुष्टराजगजाङ्कुशे । । ७ ।। दुष्ट राजा रूपी हाथियों को वश में करने वाले अड्कुश के समान जिस खड्ग धारण करने वाले राजा (दाचयनायक) में राजलक्ष्मी का स्थिर प्रेम था और पृथ्वी करिणी के समान उनकी वशर्तिनी ( वश में रहने वाली ) थी ॥७॥ तस्य भार्या महाभाग्या विष्णोः श्रीरिव विश्रुता । वोचमाम्बा गुणोदारा जाता तामरसान्वयात् ।। ८ ।। उनकी वोचमाम्बा (नामक ) महान् सौभाग्यशाली और उदार गुणों वाली पत्नी अनुगमन के कारण विष्णु की (पत्नी) लक्ष्मी के समान विश्रुत हुई ॥ ८ ॥ तयोरभूवन् क्षितिकल्पवृक्षाः पुत्रास्त्रयस्त्रासितवैरिवीराः । शिङ्गप्रभुर्वेन्नमनायकश्च वीराग्रणी रेचमहीपतिश्च । । ९ । । उन दोनों (पति-पत्नी दाचयनायक और वोचमाम्बा) के शत्रु वीरों को भयभीत करने वाले तथा पृथिवी के कल्पवृक्ष के समान तीन पुत्र हुए- १. शिङ्गप्रभु २. वेन्नमनायक और ३. वीरों में अग्रणी रेचमहीपति ॥ ९ ॥ कलावेकपदो धर्मो यैरेभिश्चरणैरिव । सम्पूर्णपदतां प्राप्य नाकाङ्क्षति कृतं युगम् ।। १० ।। कलयुग में अकेला पड़ा धर्म जिनके आश्रय से सम्पूर्ण गौरव को प्राप्त करके सत्ययुग की अभिलाषा नहीं करता था || १० ||
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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