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________________ [ ४५० ] (भाषा - भेदौ) भाषा द्विधा संस्कृता च प्राकृती चेति भेदतः । (२) भाषा - संस्कृत और प्राकृतिक भेद से भाषा दो प्रकार की होती है ।। ३०२५. ।। रसार्णवसुधाकरः ( तत्र संस्कृतभाषा) कौमारपाणिनीयादिसंस्कृता संस्कृता मता ।। ३०२।। इयं तु देवतादीनां मुनीनां नायकस्य च । विप्रक्षत्रवणिक्शूद्रमन्त्रिकञ्चुकिनामपि ।। ३०३ ।। लिङ्गिनां च विटादीनां योगिनीनां प्रयुज्यते । संस्कृत भाषा - कुमार, पाणिनि ( इत्यादि वैयाकरणों ) के द्वारा शुद्ध की हुई भाषा संस्कृत भाषा कहलाती है। यह देवता और मुनि नायकों की तथा विप्र, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, मन्त्री और कञ्चुकी, लिङ्गिनी, विट और योगिनियों की प्रयोज्य भाषा होती है ।। ३०२उ. - ३०४पू. ॥ अथ प्राकृती ( भाषा) - प्रकृतेः संस्कृतायास्तु विकृतिः प्राकृती मता ।। ३०४।। षड्विधा सा प्राकृतं च शौरसेनी च मागधी । पैशाची चूलिका पैशाच्यपभ्रंश इति क्रमात् ।। ३०५।। प्राकृतिक भाषा - मूल संस्कृत की विकृत (भाषा) प्राकृती भाषा कहलाती है। वह क्रमश: छ: प्रकार की होती है- प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची और अपभ्रंश ।। ३०४उ. - ३०५पू.।। (प्राकृतम् ) अत्र तु प्राकृतं स्त्रीणां सर्वासां नियतं भवेत् । क्वचिच्च देवी गणिका मन्त्रिजा चेतियोषिताम् ।। ३०६ । । योगिन्यप्सरसोः शिल्पकारिण्या अपि संस्कृतम् । ये नीचाः कर्मणा जात्या तेषां प्राकृतमुच्यते । । ३०७।। छद्मलिङ्गवतां तद्वज्जैनानामिति केचन । (१) प्राकृत- प्राकृत सभी स्त्रियों की नियत भाषा है। कहीं-कहीं महारानी, वेश्या, मन्त्री की पुत्री, स्त्रियाँ, योगिनी, अप्सराएँ शिल्पकारिणी की भी भाषा संस्कृत होती है।। ३०६-३०७पू.।। जो कर्म अथवा जाति से नीच होते हैं उनकी भाषा प्राकृत कही गयी है। कुछ
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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