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________________ तृतीयो विलासः तथा निर्वहण सन्धि से युक्त तथा (कवि की) इच्छा के अनुसार जो एक, दो अथवा तीन अङ्कों से समन्वित होता है। इसमें विष्कम्भक के साथ ( रङ्गमञ्च पर पात्रों का) प्रवेश होता है। प्रायेण अमङ्गल युक्त इस (उत्सृष्टिकाङ्क) के अन्त में मङ्गल का ( समायोजन) करना चाहिए। इसमें प्रयोजक (नायक) का पुनर्जीवित होने तक बध कार्य को दिखलाना चाहिए अथवा पुनजीर्वित होने से भी अधिक मनोहर फल का विधान करना चाहिए। करुणाकन्दल इत्यादि को इसका उदाहरण जानना चाहिए ।। २२९-२३३॥ अथ व्यायोगः ख्यातेतिवृत्तसम्पन्नो निस्सहायकनायकः । युक्तो दशावरैः ख्यातैरुद्धतैः प्रतिनायकैः । । २३४।। विमर्शगर्भरहितो भारत्यारभटीस्फुटः । हास्यशृङ्गाररहित एकाङ्की रौद्रसंश्रयः ।। २३५ ।। एकवासरवृत्तान्तः प्राप्तविष्कम्भचूलिकः । अस्त्रीनिमित्तसमरो व्यायोगः कथितो बुधैः ।। २३६।। विज्ञेयमस्य लक्ष्यं तु धनञ्जयजयादिकम् । | ४३१ ] व्यायोग- व्यायोग प्रख्यात ( इतिहास पुराण प्रसिद्ध ) इतिवृत्त वाला होता है, नायक सहायकों से रहित होता है, दश से कम प्रख्यात उद्धत प्रतिनायकों युक्त होता है। यह विमर्श और गर्भ (सन्धि) से रहित होता है, भारती और अरभटी प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ती है। हास्य और शृंगार (रस) से रहित तथा रौद्र (रस) से युक्त होता है, एक अङ्क वाला होता है जिसमें एक दिन का वृत्तान्त होता है तथा विष्कम्भक और चूलिका से युक्त होता है। इसमें स्त्री के लिए युद्ध नहीं होता किन्तु सङ्ग्राम होता है- ऐसे रूपक को विज्ञों व्यायोग कहा है। धनञ्जयजय इत्यादि इसके उदाहरण हैं ।। २३४-२३७पू.।। अथ भाण: स्वस्य वान्यस्य वा वृत्तं विटेन निपुणोक्तिना ।। २३७ ।। शौर्यसौभाग्यसंस्तुत्या वीरशृङ्गारसूचकम् । बुद्धिकल्पितमेकाङ्कं मुखनिर्वहणान्वितम् ।। २३८ वर्ण्यते भारतीवृत्त्या यत्र तं भाणमीरते । एकपात्रप्रयोज्येऽस्मिन् कुर्यादाकाशभाषितम् ।। २३९ ।। (५) भाण- भाण में विट अपने अथवा दूसरे के वृत्तान्त को निपुणता पूर्वक कथन द्वारा (वर्णन करता है), शौर्य और सौभाग्य के वर्णन द्वारा वीर तथा शृङ्गार रस की सूचना देता है, (कथावस्तु कवि की) बुद्धि से कल्पित होती है, एक अङ्क वाला होता है, मुख और निर्वहण सन्धि से युक्त होता है, (प्रायः) भारती (कहीं कहीं कैशिकी) वृत्ति से युक्त होता
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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