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________________ [ ४१६ ] रसार्णवसुधाकरः कहलाती है। यह (१) अन्तर्लाप तथा (२) बहिर्लाप - दो प्रकार की कही गयी है ।। १७७उ. १७८पू.।। तत्रान्तर्लापा यथा प्रसन्नराघवे (१.७)प्रत्यङ्कमङ्कुरितसर्वरसावतारनव्योल्लसत्कुसुमराजिविराजिबन्धम् । घर्मेतरांशुमिव नाट्यप्रबन्धमतिमञ्जुलसंविधानम् 1163211 अत्र प्रसन्नराघवनामेत्युत्तरस्य सप्ताक्षराष्ट्रपङ्क्तिक्रमेण लिखितेऽस्मिन्नेव श्लोके मृग्यत्वादन्तर्लापा नामेयम् । वक्रतयाभिरम्यं अन्तर्लाप जैसे प्रसन्नराघव (१.७) में प्रत्येक अङ्क में (शृङ्गारादि) सभी रसों की प्ररुढ़ अवतारणा से युक्त, अभिनव प्रसून पंक्तियों के समान सुकुमार, ललित और अशिथिल पद - विन्यास वाले, चन्द्रमा के समान वक्रता (कुटिलता, वक्रोक्ति) से अत्यधिक सुरम्य और अत्यधिक मनोज्ञ कथानक से सम्पन्न नाटक को आप द्वारा अभिनीत होता देखेंगे ।1632।। ‘प्रसन्नराघवनाम' इस (पद) में सातवें अक्षर को अष्टपंक्ति क्रम से लिखने पर इस श्लोक में खोजने से अन्तर्लाप है। बहिर्लापा यथा बालरामायणे (१.५) पारिपार्श्विकः कमवड्ढन्तविलासं रसाअले कं करेइ कन्दप्पो । (क्रमवर्धमानविलासं रसातले किं करोति कन्दर्पः । ) सूत्रधार - अये प्रश्नोत्तरम्, सेयमस्मत्प्रीतिरिति देवादेशः । तत् स्वमेव वाचयामि । (वाचयति) - निर्भरगुरुर्व्यधत्त च वाल्मीकिकथां किमनुसृत्य 11633 ।। इत्यत्र बालरामायणमित्युत्तरस्य बहिरेव मृग्यत्वाद् बहिर्लापा नाम नालिकेयम्। बहिर्लाप जैसे बालरामायण (१.५) में परिपार्श्विक- पृथ्वी पर कामदेव किसे बढ़ते हुए विलासों वाला बनाता है? सूत्रधार अरे प्रश्नोत्तर ! तो स्वामी का आदेश मेरे लिए है तो स्वयं लेकर बाँचू (बाँचता है) निर्भर - राज का गुरु (राजशेखर) वाल्मीकि की कथा का क्या अनुसरण करके बनाया । 1633।। यहाँ 'बालरामायण इस उत्तर का बाहर से खोजने के कारण बर्हिलाप नामक नालिका है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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