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________________ तृतीयो विलासः [४०] कमल प्रकट हो गये हैं जिसमें विश्वामित्र रूपी आमोद है तथा जो लक्ष्मण रूपी हंस को आनन्द देने वाला है।।617 ।। यहाँ शरत्काल के वर्णन की समानता से विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण का प्रवेश प्रवर्तक है। अथ प्रयोगातिशयः एषोऽयमित्युपक्षेपात् सूत्रधारप्रयोगतः ।।१६१।। प्रवेशसूचनं यत्र प्रयोगातिशयो हि सः । (३) प्रयोगातिशय- 'यह वह है' इस प्रकार के सूत्रधार के वाक्य से सूचित होकर जहाँ पात्र का प्रवेश होता है, वह प्रयोगातिशय नामक आमुख होता है।।१६१ उ. १६२पू.।। यथा मालविकाग्निमित्रे (१.३) शिरसा प्रथमगृहीतामाज्ञामिच्छामि परिषदः कर्तुम् । देव्या इव धारिण्याः सेवादक्षः परिजनोऽयम् ।।619।। अत्रायमित्युपक्षेपेणाक्षिप्तः परिजनप्रवेशः प्रयोगातिशयः। जैसे मालविकाग्निमित्र (१/३) में सभा ने मुझे पहले ही जो आज्ञा दे रखी है, उसका मैं वैसे ही आदर के साथ पालन करना चाहता हूँ जैसे आदर से यह स्वामिनी भक्त-दासी अपनी स्वामिनी महारानी धारिणी की आज्ञापालन करने के लिए इधर चली आ रही है।।619।। यहाँ 'यह है' इस प्रकार के (सूत्रधार के) वाक्य द्वारा सूचित परिजन का प्रवेश प्रयोगातिशय है। तथा च शाकुन्तले (१/५) तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं हृतः । एष राजेव दुष्यन्तः सारङ्गेणातिरंहसा ।।620।। इत्यत्र एष इत्युपक्षेपणाक्षिप्तो दुष्यन्तप्रवेशः प्रयोगातिशयः । और जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल (१/५) में तुम्हारा मनोहर गीत- राग जबर्दस्ती मुझे वैसे ही खींच ले गया है जैसे अत्यन्त वेग वाला हिरन इस राजा दुष्यन्त को (खींच ले गया है) ।।620।। . यहाँ “यह है' इस प्रकार के वाक्य द्वारा सूचित दुष्यन्त का प्रवेश प्रायोगतिशय है। (अथामुखस्य वैविध्यम् ) प्रस्तावना स्थापनेति द्विधा स्यादिदमामुखम् ।।१६२।। आमुख के दो भेद- आमुख दो प्रकार का होता है- (१) प्रस्तावना और (२)
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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