SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयो विलासः [४०५] (अथामुखाङ्गानि) त्रीण्यामुखाङ्गान्युच्यन्ते कथोद्घातः प्रवर्तकः । प्रयोगातिशयश्चेति तेषां लक्षणमुच्यते ।।१५९।। आमुख के अङ्ग- ये तीन आमुख कहे गये हैं- (१) कथोद्घात (२) प्रवर्तक और (३) प्रयोगातिशय । उनका लक्षण कहा जा रहा है।।१५९।। (तत्र कथोद्घातः) सूत्रिणो वाक्यमर्थं वा स्वेतिवृत्तसमं यदा । स्वीकृत्य प्रविशेत् पात्रं कथोद्घातो द्विधा मतः ।।१६।। (१) कथोद्घात- अपनी कथा के सदृश सूत्रधार के मुख से निकले हुए वाक्य अथवा वाक्यार्थ को स्वीकार (ग्रहण) करके पात्र प्रवेश करता है तो वह कथोद्घात कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है- (अ) वाक्य-ग्रहण करके पात्र का प्रवेश करना और (आ) वाक्यार्थ ग्रहण करके पात्र का प्रवेश कराना।।१६०॥ तत्र वाक्येन कथोद्घातो यथा रत्नावल्याम् (१/७) द्वीपादन्यस्मादपि मध्यादपि जलनिधेर्दिशोऽप्यन्तात् । आनीय झटिति घटयति विधिरभिमतमभिमुखीभूतः ।।615 ।। अत्र च वाक्येन कथोरातः। वाक्य से जैसे रत्नावली के (१/७) में अनुकूल भाग्य दूसरे द्वीप से, समुद्र के मध्य से तथा दिशाओं के छोर से भी लाकर अभीष्ट वस्तु (अथवा व्यक्ति) को शीघ्रता से मिला देता है।।615 ।। यहाँ वाक्य से कथोद्घात है। अर्थेन कथोद्घातो यथा वेणीसंहारे (१०७)निर्वाणवैरदहनाः प्रशमादरीणां नन्दन्तु पाण्डुतनयाः सह माधवेन । रक्तप्रसाधितभुवः क्षतविग्रहाश्च स्वस्था भवन्तु धृतराष्ट्रसुताः सभृत्याः ।।616।। वाक्यार्थ से जैसे वेणी संहार (१/७ में) (१) सूत्रधार द्वारा कहा गया अर्थ- शत्रुओं के शान्त हो जाने के कारण शत्रुतारूपी आग को शान्त कर लेने वाले पाण्डु के पुत्र (युधिष्ठिर इत्यादि) कृष्ण के साथ आनन्द करें। चाहने वाले (पाण्डवों) को भूमि प्रदान करने वाले, शान्त युद्ध वाले कौरव (दुर्योधन इत्यादि) भी सेवकों के सहित स्वस्थ रहें।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy